इसके लिए कहा जाता है… तिल संक्रात… खिचड़ी भात, तिलवारा में खाए, सो अमृत पात…। तिलवाराघाट के लिए ये कहावत सदियों से कही जा रहा है। वैदिक पंडितों के अनुसार नर्मदा के इस तट में मकर संक्राति पर्व पर तिल का उबटन लगाकर स्नान करने से अक्षय पुण्य मिलता है। एेसी मान्यता है कि तिलवाराघाट में इस पर्व पर तिल के लड्डू व खिचड़ी का दान और सेवन से व्याधियां व कष्ट दूर होते हैं। यही वजह है कि मकर संक्राति पर यहां मेला भरता है और दूर-दराज से बड़ी संख्या में लोग स्नान, दान व पूजन करने आते हैं।
तिल से पड़ा नाम
मान्यता है कि तिल से यहां स्नान के विशेष महत्व के कारण ही नर्मदा के इस तट का नाम तिलवाराघाट पड़ा। बुजुर्ग बताते हैं पहले यहां दुर्लभ चीजों का मेला भरता था। देशभर से विशेष वाद्य यंत्र यहां मेले में बिकने आते थे। जबकि मजबूत तलवारों के लिए भी ये मेला जाना जाता था। समय के साथ मेले का स्वरूप बदल गया अब वाद्य यंत्र और तलवार बेचने वाले तो नहीं आते पर मेले का स्वरूप भव्य हो चुका है।
शनिदेव के दर्शन का महत्व
जानकारों के अनुसार तिलवाराघाट में स्नान के बाद शनिदेव के दर्शन का विशेष महत्व है। यही वजह है कि लोग स्नान-दान के बाद शनि मंदिर में शनि देव के दर्शन भी करते हैं।
झूलों की बहार
तिलवाराघाट में मकरसंक्राति मेला पर झूलों की बहार रहती है। बच्चों से लेकर बड़ों के लिए ढेरों झूले सजते हैं। मेले के दौरान यहां लजीज व्यंजनों का स्वाद चखने भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं।
पुराणों में उल्लेख
पुराणों के अनुसार मकरसंक्राति पर तिलवाराघाट में तिल से स्नान-दान का विशेष महत्व है। इस तट के महत्व को लेकर तिल संकरात, खिचड़ी भात, तिलवारा में खाए, सो अमृत पात की कहावत भी प्रसिद्ध है।
– डॉ सत्येन्द्र स्वरूप शास्त्री, ज्योतिषाचार्य