सुरक्षा का भी रखें ध्यान
पतंगबाजी करते वक्त ऊंचाई को बैलेंस रखें।
अधिक ऊपर पतंग न उड़ाएं, ताकि पक्षियों को परेशानी न हो।
अधिक तेज मांझे का उपयोग करने से बचे।
पतंग उड़ाते समय ऊंचाई को भी ध्यान रखें।
पतंगबाजी करते वक्त ऊंचाई को बैलेंस रखें।
अधिक ऊपर पतंग न उड़ाएं, ताकि पक्षियों को परेशानी न हो।
अधिक तेज मांझे का उपयोग करने से बचे।
पतंग उड़ाते समय ऊंचाई को भी ध्यान रखें।
कमानिया की फेमस दुकान
सीनियर फोटोग्राफर नितिन पोपट ने बताया कि आज से 6 दशक पूर्व कम लोग ही मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाया करते थे। पतंग, मांझा, चरखी और सद्धी के लिए सिर्फ कमानिया पर ही एक दुकान प्रसिद्ध हुआ करती है। वह दुकान आज भी कल्लू मांझे वाले के नाम से जबलपुर की पहचान बन चुकी है। अब शहर में कई लोग परम्परा के साथ फैमिली गेट टू गेदर के लिए पतंगबाजी के आयोजन कर रहे हैं।
सीनियर फोटोग्राफर नितिन पोपट ने बताया कि आज से 6 दशक पूर्व कम लोग ही मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाया करते थे। पतंग, मांझा, चरखी और सद्धी के लिए सिर्फ कमानिया पर ही एक दुकान प्रसिद्ध हुआ करती है। वह दुकान आज भी कल्लू मांझे वाले के नाम से जबलपुर की पहचान बन चुकी है। अब शहर में कई लोग परम्परा के साथ फैमिली गेट टू गेदर के लिए पतंगबाजी के आयोजन कर रहे हैं।
गुजरात की तर्ज पर शुरू हुआ
गुजरात की तर्ज पर पतंगोत्सव का कार्यक्रम शहर में 1999 में शुरू हुआ था। इसे गुजराती मंडल के सचिव स्व. भूपेन्द्र भाई पटेल ने किया था। वे यहां होने वाले आयोजन के लिए गुजरात से ही पतंग और मांझे मंगवाया करते थे। इसमें गुजरात का प्रसिद्ध उधिया, तिल के व्यंजन आदि का लुत्फ उठाया जाता है।
गुजरात की तर्ज पर पतंगोत्सव का कार्यक्रम शहर में 1999 में शुरू हुआ था। इसे गुजराती मंडल के सचिव स्व. भूपेन्द्र भाई पटेल ने किया था। वे यहां होने वाले आयोजन के लिए गुजरात से ही पतंग और मांझे मंगवाया करते थे। इसमें गुजरात का प्रसिद्ध उधिया, तिल के व्यंजन आदि का लुत्फ उठाया जाता है।