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पति को मौत के मुंह से निकाल लाती है ये देवी, सावन में होता है विशेष पूजन

locationजबलपुरPublished: Jul 23, 2019 12:25:42 pm

Submitted by:

Lalit kostha

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार सावन में यदि पूजन व्रत किया जाए तो पति की दीर्घायु और उसकी अकाल मृत्यु को टाला जा सकता है

mangla gauri vrat katha

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जबलपुर। हर सुहागन चाहती है कि उसका पति दीर्घायु हो, स्वस्थ हो और प्रसन्न जीवन जिए। इसके लिए वह हर पूजन विधान और व्रत करती है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार सावन में यदि मंगला गौरी का पूजन व्रत किया जाए तो पति की दीर्घायु और उसकी अकाल मृत्यु को टाला जा सकता है। संस्कारधानी जबलपुर में बधैयापुरा स्थित मंगल चंडी मंदिर में सावन माह के प्रत्येक मंगलवार को सुहागन महिलाएं व्रत पूजन कर पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। अटल सुहाग की व्रत कथा सुनती हैं। वहीं विवाह योग्य युवतियां सुयोग्य पति के लिए इस व्रत पूजन को करती हैं।
मंगल चंडी मंदिर के पुजारी पं. सतीश शुक्ल के अनुसार सावन माह के प्रत्येक मंगलवार को सैकड़ों की संख्या में सुहागन महिलाएं मंगल चंडी माता का व्रत पूजन करती हैं। उन्हें सुहाग की निशानियां भेंट कर अटल सुहाग की रक्षा करने का वचन मांगती हैं।

 

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मंगलागौरी पूजन और विधि

मं गला गौरी व्रत श्रावण माह के प्रत्येक मंगलवार को किया जाता है। यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य का वरदान होता है। श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को किए जाने वाले इस व्रत का आरंभ 23 जुलाई, मंगलवार के दिन से किया जाएगा और सावन माह के प्रत्येक मंगलवार के दिन देवी गौरी का यह व्रत मंगलागौरी के नाम से विख्यात है। जिस प्रकार माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया। उसी प्रकार स्त्रियां इस व्रत को करके अपने पति की लम्बी आयु का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।

मंगला गौरी कथा :
मंगला गौरी व्रत के साथ एक कथा का संबंध भी बताया जाता है, जिसके अनुसार प्राचीन काल में एक नगर में धर्मपाल नामक का एक सेठ अपनी पत्नी के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन कर रहा होता है। उसके जीवन में उसे धन वैभव की कोई कमी न थी किंतु उसे केवल एक ही बात सताती थी जो उसके दुख का कारण बनती थी कि उसके कोई संतान नहीं थी। जिसके लिए वह खूब पूजा पाठ ओर दान पुण्य भी किया करता था। उसके इस अच्छे कार्यों से प्रसन्न हो भगवान की क़ृपा से उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ, लेकिन पुत्र की आयु अधिक नहीं थी। ज्योतिषियों के अनुसार उसका पुत्र सोलहवें वर्ष में सांप के डसने से मृत्यु का ग्रास बन जाएगा। अपने पुत्र की कम आयु जानकर उसके पिता को बहुत ठेस पहुंची लेकिन भाग्य को कौन बदल सकता है, इसलिए उस सेठ ने सब कुछ भगवान के भरोसे छोड़ दिया और कुछ समय पश्चात अपने पुत्र का विवाह एक योग्य संस्कारी कन्या से कर दिया। सौभाग्य से उस कन्या की माता सदैव मंगलागौरी के व्रत का पूजन किया करती थी। इस व्रत के प्रभाव से उत्पन्न कन्या को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त था, जिसके परिणाम स्वरूप सेठ के पुत्र की दीर्घायु प्राप्त हुई।

 

mangla gauri

मंगलागौरी पूजन विधि :
फल, फूलों की मालाएं, लड्डू, पान, सुपारी, इलायची, लौंग, जीरा, धनिया (सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में होनी चाहिए), साड़ी सहित सोलह श्रंृगार की 16 वस्तुएं, 16 चूडिय़ां इसके अतिरिक्त पांच प्रकार के सूखे मेवे 16 बार, सात प्रकार के धान्य होने चाहिए। व्रत का आरंभ करने वाली महिलाओं को श्रावण मास के प्रथम मंगलवार के दिन इन व्रतों का संकल्प सहित प्रारंभ करना चाहिए। इस दिन सुबह, स्नान आदि से निव्रत होने के बाद, मंगला गौरी की मूर्ति या फोटो लाल कपड़े से लिपेट कर, लकड़ी की चौकी पर रखते हैं। फिर आटे का एक दीया बनाकर सबसे पहले श्रीगणेशजी का पूजन किया जाता है।

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