script

कभी सियासत का तक उपचार करने वाले इस परिवार से आज कोई नहीं है राजनीति में

locationजबलपुरPublished: Jun 26, 2022 10:32:51 am

: बंगला-बखरी की राजनीति का इलाज थे महापौर डॉ.बराट
: डॉ. बराट का कार्यकाल छह महीने का ही था, पर जबलपुर की राजनीति और व्यवस्था में गहरी छाप छोड़ी।

politics.png

जबलपुर। हर मर्ज के डॉक्टर रहे एससी बराट सियासत के उपचार में भी पीछे नहीं रहे। तब के बंगला-बखरी के सत्ता के केंद्र को चुनौती देने के लिए सियासत में कूद पड़े थे। उन्होंने महापौर के 6 माह के कार्यकाल में सियासतदानों को आइना दिखाने के बाद राजनीति से किनारा कर लिया और रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के रेक्टर, फिर कुलपति बने।

दरअसल, आजादी के बाद दो दशक तक जबलपुर की राजनीति दो खेमों में बंटी थी। यह खेमे कांग्रेस के थे, जिनमें एक बंगले से सत्ता और संगठन का संचालन करते थे तो दूसरा केंद्र बखरी(हवेली) का था।

वरिष्ठ साहित्यकार पंकज स्वामी बताते हैं कि इस तरह की राजनीति से कांग्रेस नेतृत्व खुश नहीं था। इस तिलिस्म को तोड़ने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा ने डॉ.एससी बराट की लोकप्रियता को भुनाया। डॉ.बराट थे तो गैरराजनीतिक पर मिश्रा से मित्रता थी तो उनके प्रस्ताव पर न नहीं कह सके। 1965 में जबलपुर नगर निगम की परिषद भंग हुई तो डॉ.बराट महापौर बनाए गए थे।

गरीबों के लिए बनवाया शेड
डॉ. बराट ने दूर दराज से आने वाले गरीबों के लिए क्लीनिक के बाहर शेड लगवा दिया था। कई बार घर लौटने के लिए किराया देते थे। वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, शिक्षकों व छात्रों से फीस नहीं लेते थे।

एक बार विद्यार्थियों के उग्र होने पर डॉ. बराट नाराज हो गए। कुछ दिन विद्यार्थियों का नि:शुल्क इलाज बंद कर दिया था, लेकिन कुछ दिन बाद वे नरम पड़ गए और अपनी परंपरा को बरकरार रखा।

परिवार से कोई राजनीति में नहीं
डॉ. बराट के पुत्र डॉ.अशोक ने उनकी चिकित्सकीय विरासत को तो संभाला, लेकिन राजनीति से उनका कोई वास्ता नहीं है। अब भी बुजुर्ग जब क्लीनिक पर पहुंचते हैं तो डॉ.बराट को जरूर याद करते हैं और उनके परिवार को उनके संस्मरण सुनाते हैं।

ट्रेंडिंग वीडियो