पुनरीक्षण याचिका दायर करने वाले जबलपुर के डॉ पीजी नाजपांडे ने बताया कि 1997 में जनता द्वारा महापौर के चुनाव का निर्णय लिया गया था। जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। हाईकोर्ट ने सभी याचिकाएं खारिज करते हुए प्रत्यक्ष चुनाव को सही पाया था। लेकिन इस बार अप्रत्यक्ष चुनाव को दी जा रही चुनौती को मान्य नहीं किया गया। अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने बताया कि डॉ.पीजी नाजपांडे व रजत भार्गव की ओर से दायर एक अन्य जनहित याचिका पर निर्देश जारी होने के बावजूद राज्य सरकार व चुनाव आयोग ने पार्षदों के चुनाव खर्च की अंतिम सीमाएं तय नहीं की तो अवमानना याचिका दायर की गई। इस बीच राज्य चुनाव आयोग ने यह सीमा तय कर दी लेकिन सरकार ने इस संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया। उन्होंने बताया कि पुनरीक्षण याचिका में उक्त सभी बिंदु शामिल किए गए हैं।