ब्लड प्लाज्मा की झिल्ली से बनाया कान का पर्दा, बिना चीरा लगाए हो रही सर्जरी
डॉक्टरों के अनुसार कान के पर्दे की परम्परागत सर्जरी में कान के पीछे 3-4 सेमी का चीरा लगाकर टेम्पोरेलिस मांसपेशी के ऊपर के कवर टेम्पोरेलिस फेसिया से पर्दा बनाया जाता है। इसमें मरीज को 3-4 दिन भर्ती किया जाता है। सर्जरी फेल होने पर दूसरी बार आसानी से कवर नहीं मिलता। जबकि, ब्लड प्लाज्मा की तकनीक में कई बार सर्जरी की जा सकती है।
कान में मुख्यत: दो प्रकार की बीमारियां होती है। पहली कान बहना और दूसरी ऊंचा सुनाई देना। ऊंचा सुनाई देना कान की नस से सम्बंधित बीमारी है, जबकि कान बहने का प्रमुख कारण पर्दे में छेद होना है। इससे कान में दर्द, और कम सुनाई जैसी तकलीफ होती है। कान के पर्दे में छेद का एकमात्र इलाज सर्जरी है।
प्रकशित करेंगे रिसर्च
मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों का दावा है कि ब्लड प्लाज्मा से कान का पर्दा बनाने का प्रयोग जबलपुर में पहली बार हुआ है। किसी भी मेडिकल जर्नल में ऐसी सर्जरी प्रकाशित नहीं हुई है। सर्जरी के 40 केस पूरे होने के बाद इसे नेशनन-इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित किया जाएगा। अगस्त 2019 में यह सर्जरी शुरू की गई। नई तकनीक से अब तक 25 मरीजों की सर्जरी की गई है। इसमें से 23 मरीजों की बीमारी दूर हो चुकी है। दो अन्य मरीजों की दोबारा सर्जरी होगी।
ये है टिम्पैनोप्लास्टी
मरीज के रक्त को ब्लड सेपरेशन मशीन सेंटीफ्यूज में डालकर उससे पीआरएफ (प्लेटलेट्स रिच फाइब्रिन) बनाया जाता है। इससे झिल्ली के रूप में कान का पर्दा बनाया जाता है। फिर नए पर्दे (टिम्पैनिक मेम्ब्रिन) को कान के अंदर छेद वाले पर्दे पर ग्राफ्ट कर छेद बंद किया जाता है। इसे टिम्पैनोप्लॉस्टी कहते हैं। सागर के खुरई निवासिनी मीना मैरिना ने बताया कि उन्होंने अक्टूबर में मेडिकल कॉलेज में नई टेक्निक से कान के पर्दें की सर्जरी कराई और बीमारी दूर हो गई है।
मेडिकल कॉलेज के ईएनटी विभाग में टिम्पैनोप्लॉस्टी की नई तकनीक ईजाद की गई है। यह सफल प्रयोग साबित हुआ। मरीजों को इसका फायदा मिल रहा है। ओपीडी बेसिस सर्जरी की जा रही है।
– डॉ. कविता सचदेवा, एचओडी इएनटी विभाग