प्रदेश के 30 इन सर्विस डॉक्टरों की ओर से याचिकाएं दायर की गई थीं। इनमें कहा गया कि जिला क्षेत्रों में काम करने वाले मेडिकल ऑफिसर, डेमोंस्ट्रेटर एवं ट्यूटर को राज्य शासन ने 30 फीसदी आरक्षण का लाभ नहीं दिया। उन्हें वरीयता सूची से अलग कर दिया गया। उनको निष्कासित करने का आधार राज्य शासन की ओर से हाल ही में मेडिकल प्रवेश नियम 2018 में किए गए संशोधन को बनाया गया।
अधिवक्ता आदित्य संघी व सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने कोर्ट को बताया कि 26 जुलाई 2022 को प्रवेश नियमों में संशोधन किया गया। उस दिन तक याचिकाकर्ता 30 प्रतिशत आरक्षण के पात्र थे। वे नीट परीक्षा उत्तीर्ण हो चुके थे। तर्क दिया गया कि इस सत्र 2022-23 की प्रवेश प्रक्रिया नीट की परीक्षा के साथ ही प्रारंभ हो चुकी थी।
उसके परिणाम आने के पश्चात राज्य सरकार ने बीच में ही अनुचित तरीके से नियमों को संशोधित करते हुए 50 से अधिक डॉक्टरों को आरक्षण के लिए अपात्र कर दिया। यह भी तर्क दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट के प्रतिपादित सिद्धांतों में स्पष्ट है कि प्रवेश प्रक्रिया एक बार प्रारंभ होने के पश्चात उस पर लागू होने वाले नियमों का मध्य में संशोधन नहीं किया जा सकता।