इसलिए मेट्रोपोलिटन जरूरी
– नगर निगम के वार्डों का विकास प्रभावित हो रहा है।
– जलप्रदाय, सीवरेज, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, जल निकासी, यातायात बड़ी समस्या है।
– एकीकृत विकास योजना न होने से शहर का विकास नहीं हो पा रहा है। निगम सीमा के बाहर की जमीनों पर शहरी विकास हो रहा है। पंचायतें नियंत्रण करने में असक्षम।
– वर्तमान सीमा के विस्तार से सिर्फ टैक्स वसूली व प्रशासकीय कार्य हो पा रहे हैं।
कानूनी कसौटी पर भी दावेदारी खरी
संविधान के 74वें संशोधन के प्रावधानों के मुताबिक महानगर को ऐसे क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया है, जिसकी जनसंख्या 10 लाख से अधिक हो। यह दो या अधिक महानगर पालिकाओं, पंचायतों या अन्य संलग्न क्षेत्रों से मिलकर बनता है। वर्तमान में जिले की आबादी 28 लाख है। 2021 तक यह 30 लाख हो सकती है।
महानगर बनने के लाभ
– नगर पालिक निगम, महानगर पालिक निगम में बदल जाएगी। इसकी स्वायत्ता बढ़ेगी और इसे सिटी गवर्नमेंट कहा जा सकेगा।
– महानगर क्षेत्र परिषद के पास निर्णय लेने का अधिकार होगा। शासन पर निर्भरता कम हो जाएगी।
– केंद्र व राज्य सरकारों से अधिक वित्तीय सहायता मिलेगी।
– योजना समिति में नगर पालिकाओं के निर्वाचित सदस्य, पंचायत अध्यक्ष व केंद्र व राज्य सरकार के प्रतिनिधि रहेंगे।
समिति नगर निगम, नगर पालिका, पंचायत क्षेत्रों की योजनाओं को लागू कर सकेगी।
– अनुच्छेद 243 ब के तहत 12वीं अनुसूची का लाभ भी होगा।
– वाटर सप्लाय, सीवरेज, ठोस कचरा प्रबंधन, स्टार्म वाटर लाइन, लोक परिवहन, स्ट्रीट लाईटिंग, ट्रैफिक सपोर्ट इन्फ्रास्टक्चर मिलेगा।
अब यह करना होगा
– महानगर योजना समिति अधिनियम तैयार करना होगा।
– अधिनियम के तहत महानगर क्षेत्र के क्षेत्रों को समाहित कर महानगर क्षेत्र का गठन होगा।
– मेट्रो एरिया में विकास कार्य तय करने के लिए कई नियोजन एवं विकास समितियों के बीच समन्वय करने के लिए महानगर योजना समिति का गठन करना होगा।
– विकास प्राधिकरण को समाप्त कर, महानगर नियोजन और विकास प्राधिकरण का गठन करना होगा। प्लानिंग और इंजीनियरिंग अमले का पुनर्गठन करना होगा।
– मास्टर प्लान को बदलना होगा। इसे सिहोरा, कुण्डम, पाटन, शहपुरा और बरगी तक बढ़ाना होगा।