वकीलों ने कहा, चुनावों पर अंकुश लगाने के लिए बनाए गए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में काफी सुधार और संशोधन की गुंजाइश है। इसके बाद ही इसे दागी उम्मीदवारों पर लगाम लगाने के लिए कारगर तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है। वकीलों ने इस प्रावधान को भी दागी उम्मीदवारों के लिए मददगार बताया, अपराधिक मामला लंबित रहने पर भी चुनाव लड़ा जा सकता है।
इन्होंने ये कहा :-
जनता को पूरा अधिकार
जनता को पूरा अधिकार है कि वह अपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को वोट न दे। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अलावा अन्य कोई कानूनी व्यवस्था एेसी नहीं है, जो दागी प्रत्याशियों पर प्रतिबंध लगाए। इसमें संशोधन की दरकार है।
– शैलेष जैन, अधिवक्ता
जनता ठुकराएगी तब आएगी अकल
जिस उम्मीदवार का भी अपराधिक रिकार्ड हो, जनता को चाहिए कि उसे ठुकरा दे। छवि खराब होने की वजह से प्रत्याशी के चुनाव हारने पर पार्टियांें की अकल भी ठिकाने आएगी। वे तभी एेसे लोगों को टिकिट देना बंद करेंगी।
– धर्मेंद्र पांडेय, अधिवक्ता
सख्त हो कानून
दागी उम्मीदवार चुनाव में भाग न ले सकें, इसके लिए कोई सख्त कानून नहीं बना। नेता न्यायालय से दोषी न ठहराए जाने की आड़ लेकर आसानी से चुनाव लड लेते हैं। आयोग का रवैया भी लचर है। जनता को एेसे लोगों को नकारना होगा।
– मनोज मिश्रा, अधिवक्ता
बीस-बीस साल लंबित रहते हैं मामले
नेताओं के खिलाफ दर्ज अपराधिक मामलों के विचारण लंबे अरसे तक चलते देखे गए हैं। कई मामले तो बीस-बीस साल तक लंबित रहते हैं। इन्हें चुनाव लडऩे का अधिकार दिया जाना गलत है। इसके लिए कानून संशोधित होना चाहिए।
-भूपेंद्र शुक्ला, अधिवक्ता