प्रदेश में हर साल १४ हजार से अधिक लोग अपने हाथों ही अपनी जिंदगी खत्म कर रहे हैं। इनमें जहर से मौत का आंकड़ा ३० फीसदी के करीब है। सबसे अधिक इस्तेमाल कीटनाशक ही हो रहा है। इसकी बड़ी वजह यही है कि जहर खेती के चलते हर तीसरे घर पर उपलब्ध है। परिजन इन आत्महत्याओं को किसानी के संकट से जोड़ते हैं, पर महिलाएं भी पीछे नहीं हैं।
प्रदेश में अब तक दो ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जब जहर की ऑनलाइन डिलीवरी हुई और मंगाने वाले इसे निगलकर आत्महत्या कर ली। इंदौर की घटना में पुलिस ने ऑनलाइन मार्केटिंग कंपनी के खिलाफ एफआइआर दर्ज की है। लेकिन उनकी साइट पर जहर कैसे मंगाए जैसे विवरण अब भी दर्ज हैं। हालांकि कीटनाशकों की ऑनलाइन बिक्री पर रोक के लिए गाइडलाइन बनाई है। पर दूसरे तरह के जहर के लिए ऐसी व्यवस्था नहीं है।
देश में 302 कीटनाशकों का पंजीयन है। इन्हें मिलाकर 832 यौगिक के कीटनाशक के उत्पादन व बिक्री की जाती है। दुनिया में हानिकारक ६६ कीटनाशक व यौगिक पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने अध्ययन के लिए वर्मा कमेटी गठित की थी। जिसकी सिफारिश पर 49 कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा दिया। बाद में 8 को मुक्त कर ९ अन्य को विशेषज्ञ तरीके से इस्तेमाल की अनुमति दी गई है।
3889 जहर से मौत
2783 की कीटनाशक से गई जान
1703 पुरुषों ने कीटनाशक पीकर जान दी
1080 महिलाओं ने कीटनाशक पीया