यह है मामला
जबलपुर के समाजसेवी ज्ञानप्रकाश ने दायर याचिका में कहा है कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-२४(१) के तहत प्रावधान है कि आपराधिक मामलों में पक्ष रखने के लिए केंद्र और राज्य सरकार हाईकोर्ट की सलाह से लोक अभियोजक नियुक्त करेगी। हाईकोर्ट के परामर्श का आशय कोर्ट की फुल बेंच से है, लेकिन हकीकत में एेसा नहीं हो रहा है। वहीं, धारा २५(ए) के तहत प्रावधान है कि राज्य सरकार लोक अभियोजन संचालनालय स्थापित करेगी। याचिका में कहा गया कि इस धारा को मप्र सरकार ने संशोधित कर दिया है, लेकिन संशोधित नियम का भी पालन नहीं हो रहा है।
1 साल उपलब्ध नहीं
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया, राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में आपराधिक मामलों की पैरवी के लिए नियमित लोक अभियोजक नियुक्त नहीं किए हैं। सरकारी वकील और पैनल लॉयर ही इन मामलों में सरकार का पक्ष रख रहे हैं। संविदा में नियुक्त होने से से ये समुचित तरीके से अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा, वे अगले एक साल तक उपलब्ध नहीं रहेंगे, लिहाजा अभी सुनवाई कर ली जाए। इस पर कोर्ट ने उनके अनुरोध के अनुसार मामले को केस फ्लो मैनेजमेंट रुल्स के तहत नॉर्मल ट्रैक में लगाने के निर्देश दिए।
क्या है ट्रैक्स
मप्र हाईकोर्ट ने २००६ में मप्र हाईकोर्ट केस फ्लो मैनेजमेंट रुल्स बनाए थे। इन्हें १८ जुलाई-२००७ को राजपत्र में अधिसूचित किया गया। नियमों के तहत हाईकोर्ट में फास्ट और नॉर्मल ट्रैक्स के तहत केस को वर्गीकृत कर इनकी सुनवाई की जानी है। फास्ट ट्रैक के मामलों की सुनवाई के लिए ६ माह की समयावधि निर्धारित की गई है। वहीं, जिला अदालतों में मुकदमों की सुनवाई एक्सप्रेस ट्रैक, फास्ट ट्रैक, रैपिड ट्रैक, ब्रिस्क ट्रैक और नॉर्मल ट्रैक के तहत सुने जाने हैं। ज्ञानप्रकाश ने कहा, नियम अधिसूचित होने के बाद से ही हाईकोर्ट में इनके आधार पर कोई केस सुनवाई के लिए नहीं लगाया गया था।