यह है मामला
सतना जिले की रामपुर बघेलान तहसील निवासी पुष्पेंद्र सिंष बघेल ने याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि उसका परिवहन वाहन बहुत दिनों से बिगड़ी हुई हालत में था। उसका फिटनेस सर्टिफिकेट भी नवीनीकृत नहीं कराया गया। इस वजह से वाहन सडक़ पर चलने की दशा में नहीं था। इसके बावजूद क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी रीवा ने उसके वाहन पर मप्र मोटरयान कराधान अधिनियम की अनुसूची दो के तहत कर आरोपित कर इसकी वसूली के लिए प्रक्रिया आरंभ की। याचिका में कहा गया कि उक्त अधिनियम की धारा ३ की उपधारा १ व २ असंवैधानिक हैं, क्योंक यह केंद्रीय मोटर व्हीकल एक्ट १९८८ की धारा ५६ के विपरीत है। याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट ने एेसे ही एक मामले में वाहन चलने योग्य न होने की दशा में कर न वसूलने के निर्देश दिए थे।
१४ दिन के अंदर बताना था
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता अमित सेठ ने बताया कि नियमों के मुताबिक यदि कोई वाहन पूरी तरह खराब और चलने योग्य न रह जाए तो चौदह दिनों के अंदर इसकी सूचना आरटीओ को दे देनी चाहिए। सूचना के अभाव में वाहन का लाइफटाइम रजिस्ट्रेशन वैध माना जाएगा। कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार कर लिया। अपने फैसले मंें कोर्ट ने ३ अक्टूबर को दिए गए राजेश कुमार मिगलानी विरुद्ध मप्र सरकार के मामले में दिए आदेश को आधार बनाया। कोर्ट के अनुसार मोटरयान कराधान अधिनियम की धारा ३ की उपधारा १ एवं २ के तहत यह वैधानिक अवधारणा बनाई जाती है कि पंजीकृत वाहन का रजिस्ट्रेशन जब तक वैध है, उस परिवहन वाहन को उपयोग में या उपयोग के योग्य माना जाएगा। इस अवधारणा के तहत फिटनेस सर्टिफिकेट न होने को वाहन पर आरोपित कर से छूट नहीं मिलती। बेंच ने उक्त प्रावधानों को वैधानिक बताते हुए याचिका निरस्त कर दी।