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बड़ी खबर: मध्यप्रदेश के जंगलों मेंं नहीं बची जानवरों को खाने के लिए घास!

locationजबलपुरPublished: Aug 04, 2018 10:22:41 am

Submitted by:

Lalit kostha

बड़ी खबर: मध्यप्रदेश के जंगलों मेंं नहीं बची जानवरों को खाने के लिए घास!
 

mp jungle and wildlife big news today

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जबलपुर. प्रदेश के जंगलों में शाकाहारी वन्य प्राणियों की बाहुल्यता और मवेशियों के दखल के कारण चारा वाली घासों की उपज कम हो रही है। वहीं बिना चारा वाली घास की प्रजातियां बढ़ रही हैं। आशंका है कि जंगल में चारे का संकट हुआ तो वन्य प्राणी बाहर आएंगे और शिकार की तलाश में बाघ-तेंदुए की दस्तक भी बढ़ेगी। ऐसी स्थिति पर नियंत्रण के लिए राज्य वन अनुसंधान संस्थान (एसएफआरआइ) के वैज्ञानिकों ने बांधवगढ़ नेशनल पार्क में पांच साल रिसर्च कर ग्रास लैंड मैनेजमेंट रिपोर्ट बनाई है।

news fact-

कोर एरिया में बढ़ रही है हार्ड ग्रास, चारे वाली घास हो रही है कम
जंगल में कम हो रहा चारा, वन्य प्राणियों के साथ बाघों के बाहर आने का खतरा
बांधवगढ़ नेशनल पार्क में एसएफआरआई के वैज्ञानिकों की रिसर्च में खुलासा

विशेषज्ञों के अनुसार जंगलों में सुधार कार्य नहीं हुए तो समस्या बढ़ेगी। एसएफआरआइ ने वर्ष 2013 में वन अनुसंधान एवं विस्तार शाखा के प्रोजेक्ट इकोलॉजिकल स्टडी ऑन ग्रास लैंड बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व विथ स्पेशल रिफरेंस टू वाइल्ड लाइफ में तीन साल रिसर्च की। वन्य प्राणी शाखा ने उसी प्रोजेक्ट के सेकेंड फेज में रिसर्च कराई है। टाइगर रिजर्व के ताला रेंज के बठान मैदान और कलवाह रेंज के खुदरा खिरवा में ग्रास लैंड मैनेजमेंट के प्रयोग हुए। कोर एरिया में घासें कम हो रही है। बफर क्षेत्र में मवेशियों की दखल ज्यादा है, कुचलने से भी नरम किस्म की घास कम हो रही है।

एक तिहाई क्षेत्र में फेंसिंग-
जंगल को तीन हिस्सों में बांटकर प्रबंधन करना है। एक तिहाई क्षेत्र का फेंसिंग कर दो साल तक उसमें वन्य प्राणियों को रोककर प्रबंधन करना है। फिर हार्ड ग्रास कास, मुसैल, खड्डा, चिनवाई, भुरभुसी, कोलिया, खस व छीर घास कम होगी।

लीज पर उगाना होगा चारा-
बफर जोन में जहां खेत हैं, वहांं के किसानों को निर्धारित दर पर भुगतान देकर लीज पर चारा उगाना होगा। बफर जोन में पर्याप्त चारा होगा तो वन्य प्राणी दूर के खेतों में नहीं जाएंगे।

ऐसे बढ़ रही 30 हार्ड ग्रास
फॉरेस्ट इकोलॉजी एंड इन्वायरेंट की ब्रांच हेड ज्योति सिंह ने बताया, 106 घास एवं खरपतवार पाए गए। ताला, मगधी, कल्वाह, खिताली, पनपथा रेंच के 38 मैदानों में 73 घास प्रजाति हैं। इनमें 30 हार्ड ग्रास हैं, जिसे वन्य प्राणी नहीं खाते हैं। रिसर्च में 10 वर्ग मीटर के जंगल में फेंसिंग की गई और उतना ही क्षेत्र खुला छोड़ दिया गया। नवम्बर में हार्ड ग्रास को उखाडकऱ आग लगाई गई, उसमें बीज बोया गया। फेंसिंग वाले क्षेत्र में 3637 किग्रा हरा चारा एवं 2280.30 किग्रा सूखने पर बॉयोमास हुआ। खुले क्षेत्र में हरा चारा 1194.90 किग्री था और सूखने पर 673.60 किग्रा हुआ।


ग्रास लैंड मैनेजमेंट की रिसर्च रिपोर्ट वन्य प्राणी मुख्यालय को भेजी जा रही है। बिना चारा वाली घास प्रजातियों को कम करने का प्रयोग किया गया है। ऐसी ही स्थिति अन्य जंगलों की भी है। ग्रास लैंड मैनेजमेंट पर बुलेटिन प्रकाशित की जा रही है।
– सीएच मुरलीकृष्णा, डायरेक्टर एसएफआरआइ

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