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अजब-गजब: यहां पेड़ों को हो रही अस्थमा की बीमारी, वैज्ञानिकों ने दिए खतरे के संकेत

locationजबलपुरPublished: Apr 08, 2018 02:35:28 pm

Submitted by:

amaresh singh

धूल और प्रदूषण की वजह से पेड़ों में कम हो रही है कार्बन डाय आक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता

Environment,

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जबलपुर। अभी तक आपने आम लोगों और पशु-पक्षियों को ही अस्थमा की बीमारी होने के बारे में सुना होगा, लेकिन पेड़ों पर हुई रिसर्च में खतरनाक जानकारी सामने आयी है। जबलपुर के मानेगांव व आसपास के क्षेत्र में हरे-भरे पेड़ अस्थमा जैसी बीमारी की गिरफ्त में आ रहे हैं। यह सब स्टोन क्रेसर्स से निकली धूल की वजह से हो रहा है। प्रदूषण अधिक है कि पेड़-पौधों का दम घुट रहा है। जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए तो यहां से हरियाली गायब हो जाएगी। हरे-भरे जंगलों के लिए प्रसिद्ध रहे इस क्षेत्र की हरियाली कागजों में दर्ज होकर रह जाएगी।
श्रीगंगानगर जैसे हालात
मानेगांव में सड़कों के किनारे व पहाड़ों पर लगे पेड़ पथरीली डस्ट के कारण धूलसरित हो गए हैं। अमझर, मानेगांव में कुछ देर मोटर साइकिल चलाने के बाद लोगों का खांस-खांसकर बुरा हाल हो जाता है। गले में खराश महसूस होने लगती है। जानकारों का मानना है कि क्रशर बाहुल्य वाले इन इलाकों में भी राजस्थान के श्रीगंगानगर जैसे हालात बन रहे हैं। क्रशर से निकली धूल व बीएस- ४ की तकनीक वाले वाहनों का धुंआ सड़क किनारे लगे पेड़-पौधों का बुरा हाल कर रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है की जांच हो जाए तो इन इलाकों में लगे पेड़-पौधों में भी अस्थमा जैसी बीमारी सामने आएगी, जो चिंताजनक है।
बंद हो रहे रंध्र
पर्यावरण विज्ञानियों के अनुसार राजस्थान, पंजाब व हरियाणा में हाईवे के किनारे लगे पेड़ों में रिसर्च किया गया। जिसमें खुलासा हुआ कि पेड़-पौधों के रंध्र बंद हो रहे हैं। पेड़ों को अस्थमा हो रहा जिससे उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही है। श्रीगंगानगर के एसडी कॉलेज बायोटेक्नोलॉजी विभाग की टीम ने रिसर्च किया। टीम ने पेड़-पौधों की पत्तियां इक_ी कर उनकी सेहत की जांच की। जांच में पता लगा कि हाईवे के ५०० मीटर के दायरे में लगे पेड़ों की पत्तियों पर लगातार वाहनों का धुंआ व प्रदूषण के हानिकारक कण जमा हो रहे हैं। इसकी वजह से पत्तियों के श्वांस रंध्र २० से ६० प्रतिशत तक बंद हो चुके हैं। पत्तों में औसतन ०.१० से ०.३५ मिलीग्राम मिट्टी जम चुकी है। इससे पौधों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फीनोल व स्टार्च की कमी हो रही है। इन कमियों की वजह से न तो हवा से कार्बन खीच पा रहे हैं न ही ऑक्सीजन लौटा पा रहे हैं। तीन राज्यों में किए रिसर्च में पंजाब में सबसे ज्यादा प्रदूषण पाया गया। हरियाणा दूसरे व राजस्थान तीसरे स्थान पर था। यही हालात अमझर घाटी और मानेगांव में साफ नजर आ रहे हैं।

जरूरी है ये उपाय
– स्टोन क्रे शर में नियमित हो पानी का छिड़काव
– चारों ओर से कवर करके रखे जाएं क्रे शर
– ज्यादा धूल वाली सड़कों में छिड़का जाए पानी
– डस्ट उड़ाने वाले के्रशर संचालकों के विरुद्ध हो ठो कार्रवाई
क्षमता हो रही प्रभावित
पत्तियों में धूल व प्रदूषण के कण की तह जम जाने पर फोटो सिंथेसिस की प्रक्रिया प्रभावित होती है। इसके कारण पत्ते ठीक ढंग से भोजन नहीं बना पता। एेसा होने पर पौधे के कार्बन डाई आक्साइड को अवशोषित करने व ऑक्सीजन छोडऩे की क्षमता भी प्रभावित होती है।
उदय होमकर, वैज्ञानिक एसएफआरआई
खतरनाक है असर
स्टोन क्रशर से निकली डस्ट व खदानों के धूल के कण व बीएस ४ तकनीक वाले वाहनों का धुंआ पेड़ों की पत्तियों में जम जाता है। इससे पौधों की सेहत पर असर पड़ता है। पेड़ बीमार हो जाएंगे, वे असमय सूखकर नष्ट हो जाएंगे। इससे पर्यावरण को भी बेहद नुकसान पहुंचेगा।
डॉ. पीआर देव, वैज्ञानिक
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