जबलपुर

7 करोड़ के गहने पहनकर निकलीं नगर सेठानियां! 350 किलो चांदी से बना माता का रथ

7 करोड़ के गहने पहनकर निकलीं नगर सेठानियां, 350 किलो चांदी से बना माता का रथ

जबलपुरOct 08, 2019 / 09:58 am

Lalit kostha

nagar sethani

जबलपुर/ मां दुर्गा की पूजा का विशेष पर्व नवरात्र माना जाता है। इन नौ दिनों में जो भी सच्चे मन से माता की भक्ति आराधना कर लेता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। जिसके बाद वह माता के लिए बहुत कुछ करना चाहता है। कुछ ऐसा ही रहस्य नगर सेठानियों के साथ जुड़ा है। सुनरहाई और नुनहाई वाली माता नगर सेठानियां ऐसे ही नहीं बनीं। बल्कि यहां पूरी होने वाली मुरादों के बाद भक्तों द्वारा दिल खोलकर सोना चांदी हीरे जवाहरात माता रानी के चरणों में अर्पित कर दिए गए। आलम यह है कि आज दोनों सेठानियां करीब 7 से 8 करोड़ रुपए के हीरे जवाहरात का शृंगार कर भक्तों को दर्शन देती है। इनकी आभा देखते ही बनती है। बुंदेलखंडी शैली की कलाकृति और स्वर्णिम आभूषणों का आकर्षण ऐसा है कि इनके दर्शनों के दौरान पैदल चलने वालों से रास्ते जाम हो जाते हैं। इस वर्ष नुनहाई वाली माता की स्थापना के १५० वर्ष पूर्ण होने पर भक्तो ने 350 किलो चांदी का रथ बनाया है। जिसमे माता जी को विदा किया जायेगा।

अंग्रेजी शासनकाल से स्थापना
शहर में दुर्गा उत्सव का अनूठा इतिहास है। यहां एक से बढ़कर एक दुर्गा प्रतिमाएं बरसों से स्थापित की जाती है। कुछ तो ऐसी भी हैं जिनकी स्थापना अंग्रेजी शासनकाल से ही की जाती हैं। और खास बात ये कि तब से लेकर अब तक इनके स्वरूप में तनिक भी परिवर्तन नही आया। माता की ये प्रतिमाएं करोड़ों रूपए के जेवर पहनती हैं। जिस स्थान पर ये प्रतिमाएं स्थापित होती हैं वहां की धूल में भी सोना-चांदी पाया जाता है। इनके जेवरों से अनूठी आभा निकलती है जो कि अपने आप में रहस्यात्मक और आकर्षित करने वाली है। जो कि हर साल बढ़ते ही जाते हैं। नवरात्रि के पावन अवसर पर हम माता के इन्हीं रूपों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं…

durga_puja_001_1829909_835x547-m.jpg

नगर की सेठानी महारानी सुनरहाई-नुनहाई
दुर्गा उत्सव की शुरूआत में माता का स्वरूप जैसा था आज भी वैसा ही है। इन्हें नगर की सेठानी, महारानी के नाम से जाना जाता है। इनके जेवर सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र हर साल ही होते हैं। ये आधा क्विंटल से अधिक के गहने धारण करती हैं। जिनमें सोना-चांदी ही नही हीरा-माणिक और मोती के जेवर भी शामिल होते हैं। इनके वस्त्र आभूषण पूरी तरह बुंदेली, आदिवासी संस्कृति के समान ही होते हैं।


कुछ ऐसे होते हैं इनके जेवर
दोनों प्रतिमाओं का आज भी पारंपरिक आभूषणों से शृंगार किया जाता है। इनमें माता के गले में बिचोहरी, पांजणीं, मंगलसूत्र, झुमका, कनछड़ी, सीतारामी तीन, रामीहार दो, आधा दर्जन हीरों से जडि़त नथ,बेंदी, गुलुबंध, मोतियों की माला। हाथों में गजरागेंदा, बंगरी, दोहरी, ककना, अंगूठी, बाजुबंध, कमरबंध, लच्छा, पैरों में पायजेब, तोड़ल, बिजौरीदार,पैजना और पायल शामिल है। जिनकी कीमत करोड़ों रुपए है।

डेढ़ सौ साल
माता की तलवार, छत्र, चक्र, आरती थाल भी चांदी से बनी हैं। माता के वाहन शेर को सोने का मुकुट, हार, चांदी की पायल आदि से सुशोभित किया जाता है। इनका सिंहासन भी विशेष सज्जा लिए होता है। सुनरहाई में आठ फीट की प्रतिमा जहां स्थापना के डेढ़ सौ साल से ज्यादा पूरे कर चुकी है। वहीं नुनहाई की सात फीट की प्रतिमा स्थापना के 150 साल हो चुके हैं। इस वर्ष भी माता का स्वरूप अत्यंत ही मनोहारी देखने मिलेगा।

धूल भी कीमती
सुनरहाई शहर का मुख्य सराफा बाजार माना जाता है। नुनहाई भी लगा हुआ ही है। जिसकी वजह से कहा जाता है कि यहां की धूल में भी सोना-चांदी मिलता है। हालांकि परंपरागत रूप से अब भी यहां मजदूर सुबह-शाम धूल को समेटेते हुए दिखाई देते हैं।

Home / Jabalpur / 7 करोड़ के गहने पहनकर निकलीं नगर सेठानियां! 350 किलो चांदी से बना माता का रथ

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.