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navratri color of the day- यहां मुस्लिम ने शुरू की थी दुर्गा पूजा, नवरात्र में सोने-चांदी के आभूषणों से सजाई जाती है प्रतिमा

locationजबलपुरPublished: Sep 23, 2017 12:17:35 pm

Submitted by:

deepankar roy

संस्कारधानी में कायम सद्भाव की मिसाल, हरे कपड़े पर विराजती है माता

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जबलपुर। संस्कारधानी में दुर्गा पूजा और दशहरा का बेहद पुराना और गौरवशाली इतिहास है। लेकिन इसे और विशेष बनाता है शहर की गंगा-जमुना तहजीब। शहर की पुरानी दुर्गा पूजा में से एक सुनहराई समिति संस्कारधानी में सद्भावना की मिसाल है। जहां, सबसे पहले एक मुस्लिम परिवार ने मां दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना की थी और सुनहराई में नवरात्र के दौरान सार्वजनिक मूर्ति पूजन की परंपरा की शुरुआत हुई। खास बात ये है कि मुस्लिम परिवार ने प्रथम प्रतिमा स्थापना के दौरान हरे रंग का प्रयोग किया था। सांप्रदायिकता और सद्भाव को कायम रखते हुए आज भी सुनरहाई में हरे रंग के कपड़े पर ही माता विराजती है।
नख से शिख तक जवाहरात से सजी मां
दुर्गोत्सव समिति सुनरहाई में मातारानी के सजे दरबार की आेर से गुजरने वालों श्रृद्धालुओं का तांता लगा है। नख से शिख तक जवाहरात से सजी भगवती की नयनाभिराम प्रतिमा के समक्ष कोई आकर हर श्रृद्धालु के पांव ठहर जाते है। यहां परम्परागत मूर्ति कला का सजीव दृश्य है। बुंदेलखंडी अलंकृत शैली की परम्परा में मातारानी सोने-चांदी के आभूषणों से सुसज्जित हैं। मां के आभूषणों की कीमत वर्ष-दर-वर्ष लगातार बढ़ रही है।
ब्रिटिश शासनकाल में स्थापित हुई थी पहली प्रतिमा
समिति के बुजुर्ग सुभाष अग्रवाल बताते हैं कि मुस्लिम परिवार ने पहली प्रतिमा स्थापित की थी। ये करीब डेढ़ सौ वर्ष पुरानी है। उस वक्त ब्रिटिश शासन था। अंगे्रजों के शासन में जिनके पास प्रवेश पत्र रहता था, उन्हें ही दर्शन मिलते थे। उस जमाने के नागरिक मक्खन तेली और मुनीर अहमद दर्शन करने गए तो अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हें रोक दिया। अंग्रेजों के खिलाफ गुस्से में आए दोनों लोगों ने रातों रात सराफा स्थित कुंए प्रतिमा स्थापित की। तब से शुरू हुई परंपरा आज तक जीवित है।
151 वर्ष पुरानी पंरपरा
सुनहराई समिति सुनरहाई समिति का गौरवशाली इतिहास 151 वर्ष पुराना है। शहर के मुख्य दशहरा चल समारोह का नेतृत्व वर्षों से सुनहराई में स्थापित की जानें वाली प्रतिमा कर रही है। समिति के सदस्यों के अनुसार मुस्लिम परिवार द्वारा स्थापित की गई पहली प्रतिमा हरे रंग का उपयोग किया गया था। इसे आज भी परंपरा का हिस्सा बनाया हुआ है। आज भी प्रतिमा के पीछे लकड़ी की तख्ती लगी रहती है। इसमें हरा कपड़ा है, जो सद्भाव की सीख देता है।
नवरात्र के नव रंग
शैलपुत्री पूजा- लाल रंग
नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां को समस्त वन्य जीव-जंतुओं का रक्षक माना जाता है। इनकी आराधना से आपदाओं से मुक्ति मिलती है।
चंद्र दर्शन– गहरा नीला
चंद्र दर्शन के दिन नीला रंग पहने। नीला रंग शांति और सुकून का परिचायक है। सरल स्वभाव वाले सौम्य व एकान्त प्रिय लोग नीला रंग पसन्द करते हैं।
ब्रह्मचारिणी पूजा- पीला
नवरात्र के दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की आराधना की जाती है। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा और साधना करने से कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है।
चंद्रघंटा पूजा- हरा
नवरात्र के तीसरे दिन मां दुर्गा की तीसरी शक्ति माता चंद्रघंटा की पूजा अर्चना की जाती है। मां चंद्रघंटा की उपासना से भक्तों को भौतिक , आत्मिक, आध्यात्मिक सुख और शांति मिलती है।
कुष्माण्डा पूजा- स्लेटी
नवरात्र के चौथे दिन मां पारांबरा भगवती दुर्गा के कुष्मांडा स्वरुप की पूजा की जाती है। माना जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था , तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी।
स्कंदमाता पूजा- नारंगी
नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना अपने आप हो जाती है। नारंगी रंग ताजगी का ***** है।
कात्यायनी पूजा- सफेद
नवरात्र के छठवें दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। कात्यायन ऋषि के यहां जन्म लेने के कारण माता के इस स्वरुप का नाम कात्यायनी पड़ा।
कालरात्रि पूजा- गुलाबी
माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति को कालरात्रि के नाम से जाना जाता हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है।देवी कालरात्रि का यह विचित्र रूप भक्तों के लिए अत्यंत शुभ है।
महागौरी पूजी- आसमानी नीला
दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। जिनके स्मरण मात्र से भक्तों को अपार खुशी मिलती है, इसलिए इनके भक्त अष्टमी के दिन कन्याओं का पूजन और सम्मान करते हुए महागौरी की कृपा प्राप्त करते हैं।
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