scriptnavratri colors 2017 hindi : अद्भुत है यहां की देवी प्रतिमा, राज राजेश्वरी के साथ होते हैं सदाशिव के भी दर्शन | navratri colors 2017 hindi: Tripura Sundari Mandir of Tevar | Patrika News

navratri colors 2017 hindi : अद्भुत है यहां की देवी प्रतिमा, राज राजेश्वरी के साथ होते हैं सदाशिव के भी दर्शन

locationजबलपुरPublished: Sep 23, 2017 03:01:27 pm

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deepak deewan

क्ति का शिव स्वरूप हैं त्रिपुर सुंदरी राज राजेश्वरी देवी, त्रिपुर सुंदरी देवी के मंदिर के निर्माण में गोलकसिंह का था अहम योगदान

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जबलपुर। शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं और शिव के बिना शक्ति की कल्पना नहीं की जा सकती- इस सनातन धार्मिक मान्यता को तेवर गांव का माता त्रिपुर सुंदरी मंदिर सार्थक कर रहा है। संस्कारधानी के धार्मिक क्षितिज पर स्थापित करने वाले त्रिपुर सुंदरी मंदिर की मां राज राजेश्वरी की प्रतिमा अद्भुत हे। मां राज राजेश्वरी की यह प्रतिमा शक्ति सहित सदाशिव का ही स्वरूप है। भक्तों की इच्छा से अधिक फल देने के लिए माता की दूर-दूर तक ख्याति फैली है।

कई मंदिर-मठ बनवाए
जबलुर सहित गोंडवाना क्षेत्र में कल्चुरी नरेशों का साम्राज्य तेरहवीं शताब्दी तक रहा। कल्चुरी नरेशों के इस क्षेत्र के अमात्य गोलक सिंह कायस्थ ने तेवर व उसके समीप भेडृाघाट का प्रसिद्ध चौंसठ योगिनी मठ सहित कई धार्मिक स्थलों के निर्माण कराए थे। त्रिपुर सुंदरी देवी के मंदिर के निर्माण में उनका अहम योगदान रहा।

शेड से बन गया भव्य मंदिर
जानकारों व क्षेत्रीयजनों के अनुसार लगभग पच्चीस वर्ष पूर्व तेवर में वर्तमान माता के मंदिर की जगह पर महज एक टीन का शेड था। इसी के नीचे यह प्रतिमा विराजमान थी। कालांतर में क्षेत्रीयजनों व श्रद्धालुओं की मदद से मंदिर को वर्तमान भव्य स्वरूप प्रदान किया गया। यहां साल भर व नवरात्र के दौरान उमडऩे वाले भक्तों की बड़ी संख्या को देखते हुए जिला प्रशासन ने अब मंदिर की देखरेख स्वयं करना आरंभ कर दिया है। यहां मनोकामना पूरी होने पर भक्तों द्वारा साल में लाखों रुपए नगदी सहित माता को स्वर्ण-रजत के आभूषण, महंगी साडि़यां व चुनरियां चढ़ाई जाती हैं।

त्रिपुरी बनी थी राजधानी
इतिहासकारों के अनुसार ६७५ ईस्वी में कल्वुरी नरेश बमराज देव ने तेवर या त्रिपुरी को अपनी राजधानी बनाया था। उस समय नर्मदा नदी तेवर ग्राम के एकदम करीब से बहती थी। कालांतर में भौगोलिक कारणों से नर्मदा ने अपने प्रवाह की दिशा बदल ली। आज भी तेवर ग्राम व इसके आसपास जमीन के अंदर से कोई न कोई पुरातात्विक महत्व की वस्तु निकल आती है।
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शैलपुत्री पूजा- लाल रंग
नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां को समस्त वन्य जीव-जंतुओं का रक्षक माना जाता है। इनकी आराधना से आपदाओं से मुक्ति मिलती है।
चंद्र दर्शन- गहरा नीला
चंद्र दर्शन के दिन नीला रंग पहने। नीला रंग शांति और सुकून का परिचायक है। सरल स्वभाव वाले सौम्य व एकान्त प्रिय लोग नीला रंग पसन्द करते हैं।
ब्रह्मचारिणी पूजा- पीला
नवरात्र के दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की आराधना की जाती है। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा और साधना करने से कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है।
चंद्रघंटा पूजा- हरा
नवरात्र के तीसरे दिन मां दुर्गा की तीसरी शक्ति माता चंद्रघंटा की पूजा अर्चना की जाती है। मां चंद्रघंटा की उपासना से भक्तों को भौतिक , आत्मिक, आध्यात्मिक सुख और शांति मिलती है।
कुष्माण्डा पूजा- स्लेटी
नवरात्र के चौथे दिन मां पारांबरा भगवती दुर्गा के कुष्मांडा स्वरुप की पूजा की जाती है। माना जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था , तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी।
स्कंदमाता पूजा- नारंगी
नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना अपने आप हो जाती है। नारंगी रंग ताजगी का ***** है।
कात्यायनी पूजा- सफेद
नवरात्र के छठवें दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। कात्यायन ऋषि के यहां जन्म लेने के कारण माता के इस स्वरुप का नाम कात्यायनी पड़ा।
कालरात्रि पूजा- गुलाबी
माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति को कालरात्रि के नाम से जाना जाता हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है।देवी कालरात्रि का यह विचित्र रूप भक्तों के लिए अत्यंत शुभ है।
महागौरी पूजी- आसमानी नीला
दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। जिनके स्मरण मात्र से भक्तों को अपार खुशी मिलती है, इसलिए इनके भक्त अष्टमी के दिन कन्याओं का पूजन और सम्मान करते हुए महागौरी की कृपा प्राप्त करते हैं।

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