पड़ोसी, पुलिस, पीडि़त के परिजन भी निभाएं जिम्मेदारी, अपराधियों को नहीं मिलेगी भागने की जगह
जबलपुरPublished: Dec 05, 2019 07:29:45 pm
जबलपुर में बच्ची की नृशंस हत्या पर बोले शहरवासी
Townspeople spoke on the brutal murder of the girl in Jabalpur-Neighbors, police, family members of the victim should also take responsibility
दो लोगों की लड़ाई में तीसरा समझाने आया तो बदमाशों ने किया यह हाल
जबलपुर। अपराधों पर लगाम नहीं लगने के बीच जबलपुर शहर के लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। आम लोगों का कहना है कि अपराधी तो अपराध करेंगे। उनके मन में डर आएगा, तभी वे सुधरेंगे। पुलिस कानून का आधार बताकर अपना पल्ला झाड़ लेती है। ऐसे में पड़ोसियों, पुलिस, पीडि़त के परिजन को मिलकर अपनी जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी। तभी अपराधों पर अंकुश लग सकता है। हाल ही में जबलपुर में छात्रा की नृशंस हत्या के बाद माहौल गुस्से से भरा है। अभी भी लोग पुलिस को सवालों के घेरे में खड़ा कर रहे हैं। आपस में भी चर्चा हो रही है कि लोगों को भी अपने स्तर से अपराध के खिलाफ खड़ा होना पड़ेगा। तभी कुछ बदलाव आ सकता है।
शहर के कुछ वकीलों ने कहा कि हत्या की धमकी देने के आरोपी पर पुलिस इसलिए निगाह रखती है कि कहीं वह धमकी को अंजाम न दे दे। इसी तरह पुलिस को छेड़छाड़ के आरोपियों पर भी निगाह रखनी चाहिए। इससे अपराधियों को कुत्सित मंसूबों को अंजाम देने का मौका नहीं मिलेगा। वकीलों ने कहा कि ऐसे मामलों में अदालतों को भी सख्ती से काम लेना होगा। तमाम अधिवक्ताओं ने कहा कि अदालतों को जमानत देने के पहले एक बार पीडि़त पक्ष की राय जरूर लेनी चाहिए। पीडि़त पक्ष को आपत्ति होने की दशा में जमानत नहीं मिलनी चाहिए। सामान्य नागरिक को अदालती प्रक्रिया की जानकारी नहीं होती। इसके साथ ही लोग कोर्ट-कचहरी जाने से भी झिझकते हैं। इसलिए आरोपी के जमानत आवेदन पर विचार के पूर्व अदालतों को स्वयं पीडि़त पक्ष को बुलाकर उनका इस बारे में विचार जानना चाहिए। यदि पीडि़त पक्ष की ओर से आपत्ति होने पर जमानत नहीं दी जानी चाहिए।
यह भी कहा गया कि छेडख़ानी से पीडि़त महिला, युवती या किशोरी के परिजनों को अतिरिक्त सजगता बरतने की जरूरत है। पड़ोसियों को भी विश्वास में लेकर संदेही या आरोपी की पहचान बतानी चाहिए। बच्चियों को अकेले घर में नहीं छोडऩा चाहिए। हालांकि, लोगों का यह भी कहना है कि आखिर बच्चियों को डर-डरकर कब रहना पड़ेगा। ऐसा समाज तो बनाना ही पड़ेगा कि बच्चियों को भी अपनी मर्जी से जीने का माहौल मिले। आखिर लड़कों और लड़कियों में कोई अंतर नहीं होने का नारा सिर्फ कागजी ही क्यों रहेगा? यदि पूरा समाज और सरकारी सिस्टम मिलकर काम करे, तो अपराधियों को भागने की जगह नहीं मिलेगी।