जबलपुर

लोकसभा चुनाव 2019 : तेरी गलियों में हम रखेंगे कदम बार-बार, सवाल वोट का है जनता सरकार

जबलपुर में राजनीति करने के मुद्दे हाथ से खाली नहीं जाने दे रहे हैं नेताजी

जबलपुरMar 25, 2019 / 07:59 pm

shyam bihari

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जबलपुर। लोकसभा चुनाव की तारीखें करीब आती जा रही हैं। पूरे देश के साथ जबलपुर में भी राजनीतिक हलचल हौले-हौले हिलोरें मारने लगी है। पूरे शबाब वाली रौनक भले नहीं दिख रही है। लेकिन, आंखों ही आंखों से बातेें होने लगी हैं। आम जनता अभी शांत है। विश्लेषक दार्शनिक भाव में हैं। नेताओं की बाहें जरूर फड़क लगने लगी हैं। वे बोल कम रहे हैं। मतदाताओं के चेहरे ज्यादा पढ़ रहे हैं। इन सबके बीच नेताओं में मुद्दे हड़पने की होड़ दिखने लगी है। सुबह उठते ही उन्हें मुद्दों की महक आने लगती है। नेताजी के लिए नई पंक्तियां गढ़ी जा रही हैं। इनके बोल कुछ इस तरह समझ सकते हैं … तेरी गलियों में हम कदम रखेंगे बार-बार…। मतलब जिन गलियों की ओर नेताजी सिर घुमाकर देखते नहीं थे। अब उस तरफ किसी ने किसी बहाने जाने की जुगत भिड़ा लेते हैं। नेताजी को लगता है कि अभी से मिलना-जुलना बढ़ा लेंगे, तो हफ्तेभर दोबारा वोट मांगने जाएंगे, तो कोई अपरिचित भी यह नहीं कहेगा कि बहुत दिन बाद दिखे जनाब।
कैसे साबित करें हम शराबी नहीं हैं
जबलपुर जिले में कुछ दिन पहले एक मामला सामने आया। खबर फैली कि एक किसान ने कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या करने की कोशिश की। पीपली लाइव वाली स्थिति बनते-बनते रह गई। फिर भी मुद्दा तो बनना ही था। बन भी गया। एक नेताजी ने डंके की चोट पर कहा, आत्महत्या करने की कोशिश करने वाला असल में किसान है ही नहीं। दूसरी बड़ी बात उन्होंने कही कि वह तो शराबी है। दूसरी पार्टी के नेताजी ने भी मोर्चा सम्भाल लिया। उनका कहना था कि शराबी होने का मतलब यह थोड़े ही हुआ कि उसे जीने का अधिकार नहीं है। पीडि़त का कहना है कि अब हम कैसे साबित करें कि शराबी नहीं हैं। सही भी है। वह हनुमानजी की तरह जिंदा रहते सीना तो नहीं फाड़ सकता ना! फिलहाल तीनों पक्ष अपनी पर अड़े हैं।
राजनीति के बहुरंग
जबलपुर नर्मदा किनारे बसा धार्मिक शहर है। लेकिन, यहां की राजनीति के तमाम रंग दिखते हैं। यहां के युवक घर में अपने बड़े भाई को भैया कहने से भले ही संकोच करें। लेकिन, नेताजी को भइया कहने में शान समझते हैं। धार्मिक स्थलों पर सभी दलों के नेताओं का जमावड़ा समान संख्या बल में लगता है। नेताजी मंदिर जांएगे। मस्जिद जाएंगे। गुरुद्वारे में मत्था ठेकेंगे। चर्च भी पहुंच जाएंगे। कभी-कभी तो लगता है धर्मनिर्पेक्षता का इतना बड़ा माहौल शायद ही कहें दिखे।

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