वहां वाटर प्लस, यहां मिटा रहे जलस्रोत
देश का पहला वाटर प्लस शहर बनने के लिए इंदौर ने काफी मशक्कत की है। नदी-नालों में मिलने वाले गंदे पानी के 7295 निर्गम बिंदु ढूंढ़े। इनमें 430 बड़े थे। नगर निगम ने 100 किलोमीटर लम्बी सीवर लाइन बिछाई। नदी-नालों में मिलने वाली लाइनों को सीवरेज की बड़ी लाइनों से मिलाया। सीवरेज का पानी साफ कर उसे पुन: उपयोग के योग्य बनाया। जबकि, जबलपुर में ओमती-मोती नालों को पक्का करने के नाम पर संकरा कर कवर्ड कर दिया गया। इससे कई स्थानों पर उनकी ठीक से सफाई भी नहीं हो पाती। माढ़ोताल, सूरजताल, गंगा सागर, गोकलपुर तालाब समेत कई बड़े तालाबों की जमीन पर अवैध कब्जा हो रहा है। उनका जल संग्रहण क्षेत्र भी सिमटता जा रहा है।
तीन नदी, 52 तालाब और 84 तलैया वाले शहर में नर्मदा नदी के अलावा अन्य नदियों का पानी पीने तो दूर, छूने लायक भी नहीं बचा है। गिनती के तालाब बचे हैं, उनमें भी प्रदूषण का स्तर इतना ज्यादा है कि जलीय जीवों का जीवन भी मुश्किल हो रहा है। यही कारण है कि तालाबों में आए दिन मछलियां दम तोड़ रही हैं।
– विनोद दुबे, भू-जलविद्
जीवन को बचाने व भविष्य को सुरक्षित करने के लिए नदी-तालाबों का संरक्षण और उन्हें पुनर्जीवित करना आवश्यक है। इंदौर ने इस दिशा में अच्छा काम किया है। स्वच्छता सर्वेक्षण में हर बार उसे इसका लाभ भी मिल रहा है। जबकि, जबलपुर में भरपूर सम्भावनाओं के बावजूद वाटर प्लस की दिशा में प्रयास नगण्य हैं।
– इंजी. संजय वर्मा, स्ट्रक्चर इंजीनियर व टाउन प्लानर