जब भी केंद्रीय मंत्रिमंडल का गठन या विस्तार होता है तो यहां के लोग उम्मीद से हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि इस बार तो उनकी दिली इच्छा पूरी होगी। लेकिन हर बार उन्हें मायूसी ही झेलनी पड़ती है। बता दें कि ये जबलपुर ही है जहां के कांग्रेस सांसद सेठ गोविंद दास जिन्होंने 1952 से 1974 तक लगातार पांच बार चुनाव जीते। सेठ गोविंद दास के देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से अच्छे संबंध रहे। सिर्फ पंडित नेहरू ही नहीं बल्कि नेहरू-गांधी परिवार से उनके बेहतर रिश्ते रहे। बावजूद इसके कांग्रेस ने उन्हें कभी भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी।
जबलपुर के मौजूदा सांसद राकेश सिंह का यह तीसरा कार्यकाल है। वह लगातार तीन बार से यहां के सांसद चुने जा रहे हैं। वर्ष 2014 में भी स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं और आमजन को लगा कि इस बार उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी और उनकी मनोकामना पूर्ण होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सिंह ने जब तीसरी बार 2019 में लोकसभा चुनाव जीता तो फिर एक बार लोगों की आस जगी। पर इस दफा भी मायूसी ही हाथ लगी। अबकी जब लोगों ने सुना की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करने जा रहे हैं तो लोग फिर से उम्मीद भरी नजरों से देखने लगे। लोगों को पूरी उम्मीद थी कि इस पर तो राकेश सिंह को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल ही जाएगी।
मोदी मंत्रिमंडल में मध्य प्रदेश को तो तरजीह मिली पर जबलपुर को एक बार फिर से नाउम्मीद होना पड़ा। इससे लोग खासे मायूस नजर आ रहे हैं। भाजपा में ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों ने सिंधिया के केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने पर जश्न तो मनाया पर जबलपुर की उपेक्षा से आम भाजपाई भी निराश हैं। उनका कहना है कि क्षेत्र का चाहे जितना विकास हुआ हो, पर राजनीतिक दृष्टि से जबलपुर अब भी पिछड़ा ही है।
जबलपुर कैंट के बीजेपी विधायक अशोक रोहाणी हों या पूर्व मंत्री लखन घनघोरिया दोनों को ही केंद्रीय मंत्रिमंडल में जबलपुर को स्थान न मिलने का मलाल है। पूर्व मंत्री घनघोरिया का कहना है कि जबलपुर सांसद सक्रिय सांसद हैं, ऐसे में उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल ना करना जबलपुर जनता का अपमान है।