जबलपुरPublished: May 16, 2019 12:02:57 am
prashant gadgil
हाईकोर्ट के पांच जजों की लार्जर बेंच का अहम फैसला
mp high court
जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट ने अहम फैसले में कहा कि अपराधिक मामले में सजा पा चुके सरकारी कर्मी की पेंशन रोकने का आदेश जारी करने के पूर्व उसे शोकॉज नोटिस देना या उसे पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर देना आवश्यक नहीं। पांच जजों की लार्जर बेंच ने संवैधानिक प्रश्न का निराकरण करते हुए यह व्यवस्था दी। लार्जर बेंच में चीफ जस्टिस एसके सेठ, जस्टिस आरएस झा, नंदिता दुबे, राजीव कुमार दुबे व संजय द्विवेदी शामिल थे। डिवीजन बेंच ने यह मामला लार्जर बेंच को भेजा था।
यह है मामला
जबलपुर के सिहोरा निवासी लाल साहब बैरागी ने याचिका दायर कर कहा कि वह मझौली नगर पंचायत में सीएमओ के पद से रिटायर हुआ। नौकरी के दौरान उसके खिलाफ लोकसंपत्ति का दुरुपयोग करने के लिए भादंवि की धारा 409, 120 बी व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 13 (1 ) (डी ) , 13 ( 2) के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया। इस मामले में उसे जिला अदालत ने दोषी पाकर सजा सुनाई। लेकिन उसने हाईकोर्ट में इस फैसले को चुनौती दे दी। हाईकोर्ट ने उसकी अपील पर निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सजा निलंबित कर दी। रिटायरमेंट के बाद 8 अगस्त 2016 को राज्य सरकार ने एक आदेश जारी कर उक्त सजा को आधार बनाते हुए उसकी पेंशन रोक दी। अधिवक्ता विपिन यादव ने तर्क दिया कि यह अनुचित है। सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों व हाईकोर्ट की लार्जर बेंच के रामसेवक मिश्रा के मामले में 2017 में दिए गए फैसले का हवाला दिया गया। कहा गया कि रिटायर्ड कर्मी की पेंशन रोकने के पूर्व उसे शोकॉज नोटिस या सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए था। जस्टिस आरएस झा व जस्टिस संजय द्विवेदी की डिवीजन बेंच के समक्ष यह प्रश्न आ खड़ा हुआ कि अपराधिक मामले में सजायाफ्ता कर्मी की पेंशन रोकने के पूर्व शोकॉज नोटिस जरूरी है या नहीं। इस पर डिवीजन बेंच ने इस संवैधानिक प्रश्न का निराकरण करने हेतु मामला पांच जजों की वृहद खंडपीठ के समक्ष भेजा था।
यह कहा लार्जर बेंच ने
कोर्ट ने कहा कि पेंशन रूल्स 8 ( 2) के तहत जब कोई कार्रवाई की जाती है तो संबंधित को नोटिस जारी करने की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने रामसेवक मिश्रा के मामले में दिए गए हाईकोर्ट के पूर्व निर्णय को अपास्त कर दिया। लार्जर बेंच ने कहा कि अपराधिक मामले में सजा पा चुके कर्मी की पेंशन रोकने के पूर्व उसे शोकॉज नोटिस, पूर्व सूचना या अपना पक्ष रखने का अवसर देना आवश्यक नहीं है।