ये हैं FACTS
– एक ऑपरेटर को रोजाना कमाई औसतन हजार रुपए
– इसमें से २० प्रतिशत कंपनी का हिस्सा
– ड्राइवर का खर्च करीब चार सौ रुपए
– शेष रुपए में वाहन मालिक की कमाई और गाड़ी के रखरखाव पर खर्च
– ग्राहकों के अनुरूप गाडिय़ों की संख्या में वृद्धि से भी कम हुई ऑपरेटरों की कमाई
– ऑनलाइन टैक्सी सर्विस में सता रहा ऑफलाइन होने का डर
दी जा रही हैं धमकियां
कैब ऑपरेटर्स ओला कंपनी की मनमानी के खिलाफ लामबंद हो गए हैं। यही वजह है कि सड़कों से ओला ट्रैक्सी अब गायब सी हो गई है। ऑपरेटरों और कंपनी का लोकल मैनेजमेंट आमने-सामने आ गया है। मैनेजमेंट ऑपरेटरों को विरोध प्रदर्शन बंद नहीं करने पर ऑफलाइन कर देने की धमकियां दे रहा है। ऑपरेटर उपेन्द्र सिंह के मुताबिक कंपनी का प्रबंधन तानाशाही करते हुए अपनी उनकी आवाज बंद कराना चाहती है। इसके विरोध में ऑपरेटर्स अपनी मांगों को लेकर अड़ा गए है।
450 कारें पंजीकृत
ओला ट्रैक्सी के रूप में शहर में करीब 450 कारें रजिस्टर्ड हैं। ऑपरेटरों का कहना है कि कंपनी नए-नए वाहनों को पंजीकृत कर रही है। इससे उन्हें पर्याप्त बुकिंग नहीं मिल पा रही है। इस तरह कंपनी से अब करीब 800 ऑटो चालक भी जुड़ गए हैं। ग्राहकों के अनुपात में वाहनों की बढ़ रही संख्या से भी ऑपरेटरों की कमाई पर असर पड़ा है।
पहले देते थे 90 हजार
ऑपरेटरों का कहना है कि उनके साथ कंपनी ने धोखा किया है। ऑपरेटर मनोज रजक ने बताया कि कंपनी ने वाहन लगाने पर 90 हजार रुपए की आय होने की बात की थी। इसके चलते बहुत से लोगों ने वाहन खरीद लिए थे। बताया जाता है कि शुरुआत में कंपनी ने भुगतान भी किया। इसके बाद थोड़े ही दिनों में कंपनी ने नियमों में फेर बदल कर ऑपरेटर्स के सामने कमाई का नया गणित लागू कर दिया।
किस्त निकालने में छूट रहा पसीना
अब हालात यह हैं कि ऑनलाइन ट्रैक्सी सर्विस प्रोवइडर से जुडे़ ऑपरेटर वाहनों की किस्त तक नहीं निकाल पा रहे हैं। 12 घंटे लॉगिन रहने के बाद भी महज 6-8 बुकिंग ही मिल पा रही हैं। इससे खर्चा निकलना मुश्किल हो गया है। जानकारों का कहना है कि ऑनलाइन सर्विस में प्रतिदिन कंपनी को 1500 से 2000 बुकिंग प्राप्त हो रही हैं। कमाई के हिस्से का 20 प्रतिशत कंपनी को देना पड़ता है। लाखों रुपए का फायनेंस लेकर खरीदे गए वाहनों में हजार से 12 सौ रुपए की कमाई हो रही है। जिसमें कंपनी का प्रतिशत भी शामिल है। ऐसे में ड्राइवर और वाहन के रखरखाव का खर्च निकाल पाना मुश्किल हो गया है।
ये हैं मांग
सड़कों से वाहन हटाकर ओला ऑपरेटर्स अपनी मांगों को लेकर एकजुट हो गए हैं। ऑपरेटर रोजाना 15 बुकिंग सुनिश्चित कराने, नाइट इंसेंटिव, कैंसिलेशन चार्जेज को ऑपरेटर एर्निंग में शामिल न करने, कंपनी द्वारा ब्रांडिंग के लिए बाघ्य न किए जाने आदि मांगों को लेकर अड़े हुए हैं।
खरीदी में भी सांठगाठ
जानकारों का कहना है कि स्थानीय मैनजमेंट हर स्तर पर गड़बड़ी कर रहा है। एक ऑपरेटर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कंपनी का वाहन शोरूम प्रबंधकों से गठजोड़ हैं। जिसके चलते स्थानी स्टाफ कंपनी से जुडऩे वाले लोगों से अपनी पसंद की कारें खरीदवाता है। प्रत्येक वाहन की बिक्री पर ऑनलाइन टैक्सी प्रोवाइडर के लोकल स्टाफ को तगड़ा कमीशन पहुंचता है।