ई-चरक मोबइल ऐप के कारण औषधियों की मार्केटिंग से बिचौलिए दूर हो गए हैं। जड़ी-बूटियों का संग्रहण करने वाले, किसान ऐप के जरिए औषधीय उत्पाद बनाने वाली कम्पनियों से जुड़ गए हैं। इससे राष्ट्रीय स्तर का नेटवर्क बन गया है। ऐप से देशभर से नौ हजार से अधिक लोग रजिस्टर्ड हो चुके हैं। विजिटर्स की संख्या भी लगभग 3.86 लाख हो गई है। जरूरतमंद लोग एक-दूसरे से सम्पर्क कर ऑफलाइन या ऑनलाइन मार्केटिंग कर रहे हैं।
सैम्पल के सर्टिफिकेशन की सुविधा भी
ऐप में देशभर की मंडियों के रेट भी उपलब्ध हैं। नेशनल मेडिशनल प्लांट्स बोर्ड, क्वालिटी कंट्रोल ऑफ इंडिया और ऐप बनाने वाली हैदराबाद की संस्था एक साथ कार्य कर रही हैं। निर्धारित शुल्क जमा कर किसान और व्यापारी सैम्पल का सर्टिफिकेशन भी करा सकते हैं। ऐप के जरिए दूसरे राज्यों की एजेंसियां भी सैम्पल मंगाकर ऑनलाइन मार्केटिंग के लिए ऑर्डर दे सकती हैं। ऐप में रजिस्टर करने के बाद यूजर आइडी और पासवर्ड प्राप्त होगा। रजिस्टर्ड व्यक्ति के मोबाइल नम्बर या ई-मेल आइडी पर सम्पर्क करने की सुविधा रहेगी।
दिल्ली की टीम ने मांगी रिपोर्ट
राज्य वन अनुसंधान संस्थान में बुधवार को बोर्ड के रिसर्च ऑफिसर डॉ. नरेश कुमावत, क्यूसीआइ के ओम त्रिपाठी और विजय लक्ष्मी ने औषधीय खेती की रिपोर्ट मांगी। उन्होंने ऐप का उपयोग करने के टिप्स भी दिए। संस्थान में नेशनल मेडिशनल प्लांट्स बोर्ड का आरसीएफसी सेंटर है। सेंटर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में औषधीय खेती का रकबा बढ़ाने के लिए कार्य कर रहा है। सेंटर का दावा है, जबलपुर में औषधीय खेती का रकबा 40 हेक्टेयर और मध्यप्रदेश में पांच हजार हेक्टेयर हो गया है। जबलपुर में एलोवेरा, बच, शतावर, पोलियस और मूसली की खेती हो रही है।
औषधीय उत्पाद के साथ अन्य उत्पादों में भी औषधीय पौधे के कच्चे माल की जरूरत बढ़ी है। औषधीय खेती का रकबा भी बढ़ रहा है। इसमें ई-चरक मोबाइल ऐप ने नेशनल लेवल का नेटवर्क तैयार किया है।
डॉ. पीके शुक्ला, डायरेक्टर, आरसीएफसी, जबलपुर