इस संबंध में कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार ने 41 आयुध निर्माणशालाओं के निगमीकरण की कवायद शुरू की है। इसके लिए प्रस्ताव पास कर दिया गया है। केंद्र सरकार के इस निर्णय से कर्मचारी नाराज हैं। उनका आंदोलन लगातार जारी है। उन्होंने राष्ट्रव्यापी हड़ताल पर जाने का ऐलान कर दिया है।
कर्मचारी संगठनों ने हड़ताल को लेकर गेट मीटिंग की। इस दौरान हड़ताल के मुद्दे पर हुए मतदान में 98 फीसद कर्मचारियों ने हड़ताल पर सहमति जताई है। कर्मचारी नेताओं के मुताबिक जुलाई के दूसरे सप्ताह से प्रस्तावित इस हड़ताल के दौरान कर्मचारी काम नहीं करेंगे और सरकार के फैसले की मुखालफत करते रहेंगे।
आयुध निर्माण के निगमीकरण के फैसले का तीनों फेडरेशन के मेंबर्स ने विरोध दर्ज कराया है। यही नहीं, तीनों फेडरेशन ने रक्षा मंत्री को पत्र लिखकर फैसले को वापस लेने की मांग की है। फेडरेशनों की मांग है कि अगर सरकार ने इस फैसले को वापस नहीं लिया तो 82 हजार कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने को मजबूर हो जाएंगे।
आयुध कर्मियो की हड़ताल से सेना को सप्लाई होने वाले इन हथियारों के उत्पादन असर पर पड़ेगा, जिसमें 105 एमएम लाईट फील्डगन, 55 एमएम मोर्टार, 27 एमएम प्रहरी गन, एल 17 एयरक्राफ्ट गन और एल 17 एंटी एयरक्राफ्ट गन, देश की सबसे ताकतवर धनुष तोप, सेना को सप्लाई किए जाने वाले वाहन जिसमें स्टालियन, एंटी लैंड माइन व्हीकल और सेफ्टी टैंक भी शामिल हैं।
पहले भी हो चुकी है देशव्यापी हड़ताल
बता दें कि पहले भी आयुध कर्मचारी देशव्यापी हड़ताल कर चुके हैं। लेकिन उस वक्त सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान देते हुए विचार करने का आश्वासान दिया था। गुस्साए कर्मचारियों ने सरकार के इस फैसले को जबलपुर की अस्मिता से खिलवाड़ करार दिया। उनकी दलील है कि जबलपुर में चल रहे करीब आधा दर्जन सुरक्षा संस्थानों में लाखों कर्मचारी काम करते हैं और उनके जरिए ही जबलपुर के बाजार में सालाना हजारों करोड़ का कारोबार होता है। कर्मचारियों का कहना है कि अगर सुरक्षा संस्थानों के निगमीकरण के फैसले पर अमल किया गया तो कर्मचारियों के सामने न केवल रोजी-रोटी का संकट पैदा हो जाएगा बल्कि जबलपुर के विकास की रफ्तार भी थम जाएगी।
बता दें कि पहले भी आयुध कर्मचारी देशव्यापी हड़ताल कर चुके हैं। लेकिन उस वक्त सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान देते हुए विचार करने का आश्वासान दिया था। गुस्साए कर्मचारियों ने सरकार के इस फैसले को जबलपुर की अस्मिता से खिलवाड़ करार दिया। उनकी दलील है कि जबलपुर में चल रहे करीब आधा दर्जन सुरक्षा संस्थानों में लाखों कर्मचारी काम करते हैं और उनके जरिए ही जबलपुर के बाजार में सालाना हजारों करोड़ का कारोबार होता है। कर्मचारियों का कहना है कि अगर सुरक्षा संस्थानों के निगमीकरण के फैसले पर अमल किया गया तो कर्मचारियों के सामने न केवल रोजी-रोटी का संकट पैदा हो जाएगा बल्कि जबलपुर के विकास की रफ्तार भी थम जाएगी।