उत्साह से भरे थे भुल्लू
भुल्लू के दादा नंदू पटेल ने बताया कि आजादी के पहले गोरखपुर में हाऊबाग रेलवे स्टेशन के समीप खेत थे। इन्हीं खेतों के बीच उनका परिवार था। नंदू के दादा भुल्लू पटेल यहीं परिवार के साथ रहते थे। नंदू के अनुसार लोग बताते हैं कि उन दिनों देश में झंडा सत्याग्रह तेजी से चल रहा था। भुल्लू इसको लेकर उत्साहित थे। वे चाहते थे कि हर इमारत पर देश का तिरंगा लहराए।
पहुंच गए टाउन हाल
परिजनों के अनुसार भुल्लू के मन में आजादी के प्रति दीवानगी थी। सन् १९४० में वे अपने हम उम्र साथियों को लेकर पहुंचे और टाउन हॉल में तिरंगा फहरा दिया। इससे अंग्रेज खफा हो गए। भुल्लू और उनके साथियों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। सजा पूरी होने के बाद वे जेल से बाहर तो आए लेकिन उसके बाद वे घर में आराम से नहीं रह पाए। हमेशा उन्हें अंग्रेज पकड़कर ले जाते थे और तरह-तरह की यातनाएं देते थे। अंतत: उनकी मौत हो गई
हर बार मिला आश्वासन
परिजनों के अनुसार देश की आजादी के बाद उन्होंने अपने पूर्वज भुल्लू के त्याग और समर्पण की बात अधिकारियों के समक्ष रखी। जिला प्रशासन के अधिकारियों को उस समय के जेल से संबंधित दस्तावेज व अन्य साक्ष्य भी प्रस्तुत किए। कई बार आवेदन दिया, लेकिन हर बार आश्वासन ही हाथ लगे। लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ। परिजनों का कहना है कि क्रांतिकारी के परिजन का दर्जा वे केवल इसीलिए चाहते हैं कि आने वाली पीढिय़ां भी अपने पूर्वज भल्लू पटेल पर यूं ही नाज करती रहें।