जबलपुर

बिटिया @work : लाड़ली सम्हालेगी थाना, इस तरह जानेंगी पापा का काम, देखें वीडियो

पत्रिका की अभिनव पहल को प्रबद्धजनों ने सराहा

जबलपुरSep 21, 2018 / 10:48 pm

Premshankar Tiwari

patrika’s initiatives Bitiya@ Work in jabalpur

जबलपुर। भारत एक एसा देश है, जहां कन्याओं को देवी के स्वरूप में पूजने की परम्परा है। यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवता… उक्ति में भी यही कहा गया है कि जहां नारी का सम्मान होता है, वहां देवता स्वयं निवास करते हैं। पत्रिका ने इसी अवधारणा को आगे बढ़ाते हुए आधुनिक युग में बेटी के मान को एक तरह से नए रूप में प्रतिपादित किया है। ये मानना है शिक्षा विभाग में कार्यरत कौशल किशोर तिवारी का। उन्होंने कहा कि पत्रिका की बिटिया @work पहल वाकई अद्भुत है। मैं बेटी को स्कूल लेकर अवश्य जाऊंगा। वहीं कटनी कोतवाली थाना प्रभारी शैलेष मिश्रा ने दोनों बेटियों को थाने का अपना काम सिखाने का मन बनाया है। मिश्रा का मानना है कि पत्रिका का यह अभियान बेटियों में उत्साह का एक नया संचार करने वाला है।

बेहद सार्थक प्रयास
कटनी थाना प्रभारी मिश्रा कहते हैं कि वर्तमान समय में जिस तरह बालिकाओं से संबंधित अपराध बढ़ रहे हैं, ऐसे में बेटियों को जिम्मेदारी के लिए करना बेहद जरूरी है। पत्रिका का प्रयास वाकई सराहनीय है। यदि बेटियां पापा के साथ दफ्तर जाएंगी तो न केवल उनका हौसला बढ़ेगा बल्कि वे प्रोत्साहित भी होंगी। मैं अपनी दोनों बेटियों शुभांगी और शिवांगी को थाने में लेकर आउंगा, ताकि वे कानून और समाज के प्रति जिम्मेदारी का अहसास करें। हर अच्छे-बुरे पहलू के लिए संवेदनशील बनें। कौशल किशोर सरकारी स्कूल में टीचर है। उन्होंने कहा कि पत्रिका के अभियान से जुड़कर पिछली बार भी मैं बेटी को अपने साथ स्कूल ले गया था। उसने मेरी वर्किंग देखी। मैं इस बात का साक्षी हूं कि उस दिन के बाद मेरी बेटी में काफी जेंजेस आए हैं। वह न केवल समझदारी और जिम्मेदारी वाली बातें करने लगी है, बल्कि उसने तो मेरी तरह टीचर बनकर समाज को शिक्षित करने का संकल्प भी ले लिया है।

इस बेटी ने रखा पिता का मान
कुछ बेटियां ऐसी भी हैं, जो पापा के प्रोफेशन में न केवल मददगार बनी हैं, बल्कि इसे ही अपना लक्ष्य भी बना लिया है। महाकोशल कॉलेज में इंग्लिश डिपार्टमेंट की हेड डॉ. आशा पांडे इन्हीं में शामिल हैं। उन्होंने अपने पिता के प्रोफेशन को बढ़ाया। पिता टीचर थे, वे भी टीचिंग फील्ड में ही गईं। अब उसी प्रोफेशन को उनकी बेटी आशिमा भी आगे बढ़ा रही हैं। आशिमा इंजीनियरिंग टीचर हैं। डॉ. आशा की दूसरी बेटी भी एकेडमिक्स में कॅरियर बनाने का सपना देख रही हैं। आशा का कहना है कि उन्हें बेटियों पर गर्व है।

पापा की तरह काम
अनिल गुप्ता शहर के जाने-माने सीए हैं। वे अंडर कई यंग सीए को ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। वे अपनी बेटी में भी ख्यातिलब्ध सीए की छवि देखते हैं। उन्होंने बेटी को सीए की विधा का हर गुर सिखाया है। बेटी न केवल उनका हाथ बंटा रही है, बल्कि पापा से प्रोत्साहित होकर उन्होंने सीए भी कम्पलीट कर लिया है। गुप्ता को बेटी पर नाज है। वहीं वे पत्रिका की पहल को भी सराहनीय निरूपित करते हैं। उन्होंने कहा कि बेटियां अधिक संवेदनशील होती हैं, यदि उन्हें अवसर दिया जाए तो वे मुकाम हासिल करके दिखाती हैं। पत्रिका का संदेश भी लगभग यही है कि बेटियों को हौसला और मान मिले ताकि वे उंचाइयों को छू सकें।

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