बीते दिनों में पेट्रोल और डीजल के दाम में क्रमश: ५० और ४५ पैसे का इजाफा हुआ। अर्थात् यदि कोई व्यक्ति पांच लीटर ईंधन भरवा रहा है तो पेट्रोल पर २.५० रुपए और डीजल पर २.२५ रुपए अधिक चुकाने पड़े। इतना ही नहीं, कई पेट्रोल पम्पों पर अभी तक बडे़ डिस्प्ले बोर्ड भी नहीं लगाए गए हैं। इसमें प्रतिदिन बदलने वाले दाम प्रदर्शित किए जाते हैं। ग्राहक केवल पेट्रोल या डीजल मशीन पर लगे डिस्प्ले बोर्ड को देख पाते हैं। लेकिन, वे इतने छोटे होते हैं कि ग्राहकों को अंतर करने में समय लग जाता है।
रोजाना दाम बदलने की प्रक्रिया से ब्लैक मार्केटिंग को बढ़ावा मिला है। इसका फायदा तेल कम्पनी और कुछ हद तक पम्प संचालक भी उठाते हैं। शहरी क्षेत्र में ज्यादातर पम्पों पर रेट बदल जाते हैं, लेकिन भीतरी इलाकों में यह संभव नहीं होता। यहां समय पर टैंकर नहीं पहुंचते। सरकार को इस तरह की आर्थिक नीतियां कार्पोरेट सेक्टर को नहीं बल्कि आम लोगों को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए। पेट्रोल-डीजल के दाम बढऩे का असर कृषि, सार्वजनिक परिवहन, फल और सब्जियों के रेट पर पड़ता है।
– डॉ. देवेन्द्र विश्वकर्मा, अर्थशास्त्री
कम अवसरों पर होती है कमी
पेट्रोल-डीजल के दामों में बहुत कम अवसरों पर कमी हुई है। सामान्यत: कोई वाहन चालक ५ से १० लीटर डीजल ही एक बार में भरवाता है। एेसे में उसे घाटे के अलावा कुछ नहीं मिल रहा है। जबकि माना यह जा रहा था कि रेट कभी कम तो कभी ज्यादा होंगे। जिले में अभी रोजाना करीब चार लाख लीटर डीजल तथा दो लाख लीटर पेट्रोल की खपत होती है। इस हिसाब से यदि इनके दाम में १० से २० पैसे का इजाफा भी होता है तो लाखों रुपए तेल कम्पनियों के खाते में चले जाते हैं।