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श्राद्धपक्ष 2018 – मौत के बाद हम सबसे पहले लेते हैं इस पक्षी का रूप

locationजबलपुरPublished: Oct 01, 2018 09:55:52 am

Submitted by:

deepak deewan

मौत के बाद

pitra moksha amawasya 2018

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जबलपुर। इन दिनों श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं। पितरों को प्रसन्न करने के लिए तर्पण किया जा रहा है। आइए इस मौके पर जानते हैं श्राद्ध के बारे में कुछ अहम बातें-


श्राद्ध में कुश तथा तिल का महत्त्व
कुश को जल तथा सभी वनस्पतियों का सार माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार कुश तथा तिल, दोनों ही विष्णुजी के शरीर से निकले हैं। पंडित जनार्दन शुक्ला बताते हैं कि गरुण पुराण के अनुसार ब्रह्माजी कुश की जड़ में रहते हैं। विष्णुजी कुश के मध्य भाग में रहते हैं। महेश अर्थात् शिवजी कुश के अग्रभाग में रहते हैं। कुश का अग्रभाग देवताओं का माना जाता है। मध्य भाग मनुष्यों का माना जाता है। कुश की जड़ भाग पितरों का माना जाता है। तिल पितरों को प्रिय होता है। तिल दुष्टात्माओं को भी दूर भगाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यदि बिना तिल बिखेर कर श्राद्ध किया जाए तो दुष्टात्माएं हवि को ग्रहण कर लेती हैं।

मरने के बाद सबसे पहले कौए का जन्म
पंडित दीपक दीक्षित बताते हैं कि शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति मरने के बाद सबसे पहले कौए का जन्म लेता है। ऐसा माना जाता है कि कौओं को खाना खिलाने से पितरों को खाना मिलता है। श्राद्ध पक्ष में कौओं का विशेष महत्त्व है। प्रत्येक श्राद्ध में पितरों को खाना खिलाने के तौर पर सबसे पहले कौओं का खाना खिलाया जाता है, जिस दिन श्राद्ध कर्म किया जाता है। उस दिन ब्राह्मण को भोजन खिलाने से पहले कौओं को भोजन का एक ग्रास डाला जाता है। कौओं को खाना डालने से पहले जोर से कोबस-कोबस कहना चाहिए । इससे कौए आ जाते हैं। साथ ही एक पात्र में पानी भी डाल दिया जाता है। आवाज लगाने पर यदि कौआ आ जाता है तब यह माना जाता है कि जिस पूर्वज का श्राद्ध है, वह प्रसन्न है और खाना खाने के लिए आ गया है। यदि कौआ कुछ देर से आता है अथवा कौआ खाना नहीं खाता है तब यह माना जाता है कि जिस पितर का श्राद्ध है, वह नाराज है। फिर उसे मनाने के प्रयास किए जाते हैं। व्यक्ति हाथ जोडकऱ माफी मांगते हैं और कौए को खाना खाने के लिए मनाया जाता है। जब तक कौआ खाना नहीं खाता है तब तक श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को प्रसन्नता नहीं मिलती है।

श्राद्ध में अनुचित बातें -श्राद्ध में कुछ खाद्य पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता है। जैसे राजमा, चना, अलसी, तीसी, सन, बासी भोजन, मसूर, कपित्थ, कोदों और समुद्रजल से बना नमक आदि भोजन में उपयोग नहीं करना चाहिए। भैंस, हिरनी, ऊंटनी, भेड़ तथा एक खुर वाले सभी पशुओं का दूध वर्जित है लेकिन भैंस के दूध से बना घी वर्जित नहीं है। दूध, दही तथा घी का उपयोग श्राद्ध में अच्छा माना जाता है। किसी दूसरे के घर में श्राद्ध नहीं करना चाहिए। अपने घर में तथा सार्वजनिक भूमि पर ही श्राद्ध किया जा सकता है।
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