श्रावकों ने भेंट किया रजतपत्र पर रचित समयसार ग्रंथ ‘समयसार एक अनमोल निधि है। इसे कागज के स्थान पर सोने-चांदी में रच देने पर भी कोई अंतर नहीं पड़ता। ऐसा इसलिए क्योंकि उसके मूलार्थ या स्वाद में कोई फर्क नहीं पड़ता। उक्त उद्गार आचार्य विद्यासागर ने दयोदय तीर्थ में सोमवार को मंगल प्रवचन में व्यक्त किए। दयोदय तीर्थ में श्रावकों ने रजतपत्र पर रचित सयमसार ग्रंथ भेंट किया। आचार्यश्री ने रजतपत्र पर रचित समयसार ग्रहण करने के बाद शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा की प्रथम दिवस की कला से लेकर दूज सहित पूर्णकालिक कला तक का जिक्र करते हुए धर्मसभा का ज्ञानवर्धन किया। इसके साथ ही सम्यक-दर्शन को लेकर भी महत्वपूर्ण सूत्र दिए। ग्रंथ भेंट करने के दौरान श्री वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल, पिसनहारी की मढिय़ा के ब्रह्मचारी त्रिलोक जैन सहित अन्य ब्रह्मचारी व आर्यिकारत्न मौजूद रहे। इस खेमचंद जैन, विनोद कुमार जैन, रमेशचंद जैन, कोमल चंद जैन, संदेश जैन, मल्ल कुमार जैन व अमित पड़रिया सहित आदि लोग उपस्थित थे।