पीपीई किट का उपयोग अस्पतालों में चिकित्सक, स्टाफ के अलावा उन लोगों के द्वारा किया जाता है जो कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के काम में लगे हुए हैं। जबलपुर एपैरल इनोवेशन एंड मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन (जायमा) के अध्यक्ष अनुराग जैन ने बताया कि आमतौर पर यह बाहर से आती है लेकिन बीते कुछ दिनों से इसे जबलपुर के रेडीमेड गारमेंट से जुड़े कारोबारियों के द्वारा तैयार किया जा रहा है। यह कम कीमत पर भी पड़ती है। अभी हाल में जिला प्रशासन को 250 रुपए से ज्यादा कीमत पर इसे उपलब्ध कराया गया था। इसे मानक स्तर के कपड़े नॉन वूवन 90 जीएसएम पर तैयार किया जा रहा है।
– 15 से ज्यादा कारोबारी कर रहे पीपीई किट तैयार।- जिले में 5 हजार से ज्यादा की किट की सप्लाई।
– अब तक एक लाख से हजार से ज्यादा किट बनाई गई।
– 15 सौ से ज्यादा लोगों को मिल रहा है रोजगार।
– पांच से अधिक राज्यों में की जा रही है आपूर्ति।
दिल्ली नहीं गए वापिस
शहर के किट निर्माता शिवांशु श्रीवास्तव, सरल जैन एवं अनिल जैन ने बताया कि इस काम के शुरू होने से शहर के भीतर ही करीब 15 सौ लोगों को रोजगार भी मिल गया है। क्योंकि इस काम को करने वाले ज्यादातर कारीगर दिल्ली से है। उन्होंने संक्रमण के दौर में वहां वापिस जाने की जगह जबलपुर में रहना ज्यादा सुरक्षित समझा। इससे उन्हें रोजगार भी मिल रहा है। दूसरी तरफ संकट के इस दौर में कारोबारियों को भी काम मिला है।
क्या होता है किट मे
पीपीई किट में प्रोटेक्शन गाउन, लोवर, फेस मास्क, हेड कवर, हैंड ग्लब्ज और शू कवर होते हैं। इन्हें यदि कोई चिकित्सक पहनता है तो एक बार ही इस्तेमाल किया जा सकता है, वहीं दूसरे कामों में लगे कर्मचारी या स्टाफ धोकर दो से तीन बार उपयोग कर सकता है। शहर में प्रोटेक्शन गाउन, शू कवर एवं हेड कवर बनाया जा रहा है। मास्क एवं हैंड ग्लब्ज दूसरी जगहों से लाए जा रहे हैं।
मुनाफाखोरी भी बढ़ी
शहर में बनने वाली पीपीई किट से मुनाफाखोरी भी की जा रही है। इसे तैयार करने वाले कारोबारियो का कहना है कि अभी शासन से इसकी सीधी खरीदी नहीं हो रही है। इसलिए थोक व्यापारी इसे ले जा रहे हैं। लेकिन कई ऐसे हैं जो इन्हें बाहर ले जाकर दोगुने दामों में बेच रहे हैं। इसकी शिकायत भी दूसरे राज्यों से आ रही है।