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प्रद्युम्न मर्डर केस: आप भी जरूर पढ़ें बच्चों के मन की भाषा, इम्पलसिव दिखे बच्चा तो संभल जाएं

locationजबलपुरPublished: Nov 09, 2017 09:05:25 pm

Submitted by:

deepankar roy

हरियाणा गुरुग्राम में हुई घटना ने छोड़े गंभीर सवाल, एक्सपटर््स ने कहा – यह सम्हलने का वक्त

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जबलपुर। हरियाणा के गुरुग्राम में हुए प्रद्युम्न मर्डर केस में सीबीआई के खुलासे ने सभी चौंका दिया है। एक प्रश्न भी छोड़ दिया है कि क्या पेरेन्ट मीटिंग को टालने के लिए कोई छात्र इतना घातक कदम उठा सकता है? आखिर उसके मन इतना क्रूर खयाल कैसे पनप गया? कहीं यह भविष्य के लिए खतरे का संकेत तो नहीं है? इसके लिए कहीं शिक्षा से दूर होता जा रहा नैतिकता का सबक या फिर काम के बोझ में बच्चों और पेरेन्ट्स के बीच बढ़ती दूरी तो इसके लिए जिम्मेदार नहीं है? कुछ भी हो लेकिन इस घटना को अलार्मिंग साइन माना जा सकता है। यह सबक है कि पैरेंट्स सचेत हो जाएं। बच्चों पर निगरानी रखें, ताकि उनकी मानसिक स्थिति को भांपा जा सके। जबलपुर के मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सकों की मानें तो लाइफ स्टाइल और गैजेट्स का प्रयोग बच्चों की मानसिक स्थिति पर असर डाल रहे हैं।
क्या है कमी
कम उम्र में आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देना, अग्रेसिव होना, यह घटना आज बहुत बड़ा सवाल है। कम उम्र में ही बच्चे ऐसे क्यों हो रहे हैं? क्या कारण है या कहां कमी रह गई, जिससे इस तरह की घटनाएं समाज में हो रही हैं। मनोवैज्ञानिकों की मानें तो इसका सीधा संबंध बच्चों की फिजिकल एक्टिविटी के कम होने तथा पैरेंट्स और बच्चों के बीच कम्युनिकेशन गैप होने की वजह से हो रहा है। ऐसे कई कारण सामने आ रहे हैं, जो बच्चों के मानसिक स्तर को प्रभावित करते हैं। यदि बच्चों के व्यवहार में नकारात्मकता आ रही है तो पैरेंट्स को उन पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
हर सप्ताह 5 मामले
बच्चों और किशोरों में आक्रामकता बढ़ती जा रही है। कई बारगी वे तनाव में भी दिखाई देते हैं। घर में यह तनाव पढ़ाई के बोझ या फिर इसमें असफलता के डर का भी हो सकता है। आपराधिक गतिविधियों में भी किशोरों की संलिप्तता का ग्राफ बढ़ा है। जुबेनाइल के अंतर्गत विक्टोरिया और मेडिकल हास्पिटल में मेंटल चैकअप के लिए लाए जाने वाले किशोरों की संख्या बढ़ी है। जबलपुर एेसे में औसतन 5 से 6 मामले प्रति सप्ताह आ रहे हैं।
ये हैं कुछ कारण
1. पेरेंट्स का अटेंशन ना मिलना- अधिकांश पैरेंट्स वर्किंग हैं। बच्चों की लाइफ में दखल देना भी उचित नहीं मान रहे हैं। यही कारण है कि वह बच्चों की केयर नहीं करते।
2. पेरेंट्स की ओर से पढ़ाई का प्रेशर- पैरेंट चाहते हैं कि उनका बच्चा क्लास में फस्र्ट या फस्र्ट डिविजन आए। इस महत्वाकांक्षा के कारण पैरेंट्स बच्चों पर दबाव डालते हैं। यदि बच्चा पढ़ाई में कमजोर है और वह पेरेंट्स की इन इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं तो वह गलत कदम उठाने से भी नहीं चूकते।
3. फिजिकल एक्टिविटी खत्म होना- आजकल हर पैरेंट्स बच्चों को कम उम्र में ही गैजेट्स दिलवा रहे हैं। वह अपना पूरा टाइम मोबाइल, कंप्यूटर और टेबलेट में ही बिताते हैं। इससे उनकी फिजिकल एक्टिविटी खत्म हो गई है। फाइटिंग वाले मोबाइल गेम्स आक्रामकता बढ़ाने का काम करते हैं।
4. संगत का असर- कुछ बच्चे स्वभाव से ही वायलेंट होते हैं या इस उम्र में संगत का असर भी तेजी से पड़ता है। खराब संगत में रहने वाला व्यक्ति भी गलत काम करने को अग्रसर होता है।
5. मोरल वैल्यू की क्लासेस नहीं- आजकल पढ़ाई के प्रेशर के कारण स्कूलों में मोरल वैल्यूज की कक्षाएं न के बराबर हो गई हैं। इसके साथ ही घरों में नैतिक मूल्य नहीं सिखाए जा रहे हैं।
शौक को दें तवज्जो
गुरुग्राम घटना में आरोपी छात्र पियानो का शौकीन था, लेकिन पढ़ाई से दूर। अपना ज्यादातर समय म्यूजिक रूम में बताता था। इससे यह बात भी निकलती है कि यदि आरोपी के पैरेंट्स ने उसके इंटरेस्ट का ध्यान दिया होता तो वह यह कदम नहीं उठाता। शहर के मनावैज्ञानिकों की मानें तो पढ़ाई का लगातार दबाव बने रहने से बच्चों के दिमाग में प्रेशर बढ़ता है। वे इसे कम करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
पैरेंट्स हो जाएं तैयार, रखें इन चीज का ध्यान
– पैरेंट्स बच्चों की गतिविधियों पर ध्यान दें।
– यदि बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लगता है तो वह उनके इंटरेस्ट को पहचानें।
– हॉबी क्लासेज जॉइन करवाएं, ताकि वे वह अपनी एनर्जी पॉजिटिव काम में लगा सकें।
– बच्चों को यदि उनके इंटरेस्ट का काम करवाया जाए तो वह उसे पूरे मन से करेंगे और उनका दिमाग किसी गलत काम करने की ओर नहीं जाएगा।
– पैरेंट्स बच्चों के साथ फ्रेंडली बिहेव करें।
– बच्चों की फिजिकल एक्टिविटी बढ़ाएं। आउट डोर गेम्स खेलने व गार्डनिंग करने को कहें।
– गैजेट्स पर कम ध्यान देने दें। एक समय निर्धारित करें और यह भी चेक करते रहें कि वह सोशल मीडिया को लेकर किन चीजों में इन्वॉल्व रहता है।
– पैरेंट्स बच्चों से कम्यूनिकेशन बढ़ाएं।
अगर एेसा बिहेवियर है तो संभल जाएं
– इम्पलसिव बिहेवियर जैसे जिद्दी स्वभाव
– गुस्सा अधिक आना
– हायपर एक्टिव
– आत्मघाती

डायनिंग टेबल पर होगी बेहतर शेयरिंग
मनोवैज्ञानिक डॉ. रजनीश जैन के अनुसार रोज एक वक्त का खाना एक साथ खाएं। डायनिंग टेबल पर बेहतर शेयरिंग होगी। पेरेंट्स भी बच्चों के दिमाग में चल रही बात को समझ पाएंगे। जब हम बच्चों से इंट्रैक्शन करते हैं तो वह जल्दबाजी में वह बात भी कह जाते हैं तो उनके मन में चल रही होती है।
शक होने पर जांच जरूर करवाएं
मनोचिकित्सक डॉ. स्वप्निल अग्रवाल के अनुसार यदि बच्चों में इम्पलसिव बिहेवियर देखें तो इसकी तुरंत जांच करवाएं, क्योंकि यह बिहेवियर टीनेज में पहुंचने तक एंटी सोशल बना देते हैं। यदि जिद्दी स्वभाव या हायपर एक्टिवनेस दिखे तो एक बार मानसिक स्तर की जांच जरूर करवाएं।
गैजेट्स बड़ा कारण
मनोवैज्ञानिक डॉ. रत्ना जौहरी के अनुसार आजकल पैरेंट्स और बच्चों के बीच कम्यूनिकेशन खत्म हो चुका है और वे गैजेट्स पर ही इन्वॉल्व रहते हैं। ब्लू वेल सहित अन्य फाइटिंग गेम्स बच्चों में एग्रेसिवनेस बढ़ाते हैं, जो कि उनकी सोशल गतिविधियों को कम कर रहा है। गैजेट्स के उपयोग पर ध्यान दिया जाए।

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