जबलपुरPublished: Apr 18, 2019 11:41:21 pm
prashant gadgil
हाईकोर्ट का निर्देश, राज्य सरकार का आदेश निरस्त
mp high court
जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट ने सरकारी सेवा से संबंधित दो अहम मामलों में सरकार को निर्देश दिए हैं। पहले मामले में राज्य सरकार को कहा कि तीन माह के अंदर संयुक्त संचालक, लोक सूचना धीरेंद्र चतुर्वेदी को अतिरिक्त संचालक, लोक सूचना के पद पर पदोन्नत किया जाए। जस्टिस संजय द्विवेदी की सिंगल बेंच ने राज्य सरकार के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें चतुर्वेदी का प्रमोशन करने से इंकार कर दिया गया था।
यह है मामला
चतुर्वेदी ने याचिका दायर कर कहा कि विभागीय वरिष्ठता सूची में ऊपर होने के चलते उन्होंने राज्य सरकार को अभ्यावेदन देकर अतिरिक्त संचालक के पद पर पदोन्नत करने की मांग की। यह आवेदन 2 अगस्त 2017 को यह कहते हुए निरस्त कर दिया गया कि सामान्य प्रशासन विभाग की राय के अनुसार इसकी अनुमति नहीं है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में मप्र लोक सेवा नियम 2002 की संवैधानिक ता को चुनौती दी गई है। इस पर सुको ने यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए थे। अधिवक्ता आकाश चौधरी ने तर्क दिया कि सुको ने 30 अप्रैल 2016 को यथास्थिति का आदेश दिया था। जबकि उनके प्रमोशन के लिए 21 मार्च 2016 को ही डीपीसी हो चुकी थी। इसके अलावा सुको में लंबित मामले में याचिकाकर्ता पक्षकार भी नहीं हैं। अंतिम सुनवाई के बाद कोर्ट ने राज्य सरकार के २ अगस्त 2017 के आदेश को निरस्त कर दिया।
सहायक श्रम आयुक्त को नहीं है समय-सीमा के बाद पेश आवेदन के निराकरण का अधिकार
इधर एक दूसरे मामले में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि सहायक श्रमायुक्त को समय-सीमा के बाद पेश आवेदनों का निराकरण करने का अधिकार नहीं है। इस संबंध में न्यायिक प्राधिकरण ही उचित आदेश पारित करने में सक्षम है। इसके साथ जस्टिस सुजय पॉल की सिंगल बेंच ने सहायक श्रमायुक्त सागर का आदेश अनुचित पाकर निरस्त कर दिया। सागर निवासी कम्मू उर्फ कमलेश विश्वकर्मा ने याचिका दायर कर कहा कि याचिकाकर्ता सागर की बंडा नगर पालिका में दैनिक वेतनभोगी कर्मी था। 2011 में उसकी सेवा समाप्त कर दी गई। इसके खिलाफ उसने 2018 में सहायक श्रमायुक्त के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया। आवेदन यह कहकर खारिज कर दिया गया कि सेवा समाप्ति के 7 वर्ष बाद आवेदन लगाया गया। जबकि निर्धारित समय-सीमा अधिकतम 3 वर्ष है। अधिवक्ता रामेश्वर पी सिंह ने तर्क दिया कि सहायक श्रमायुक्त का कार्य विशुद्ध रूप से प्रशासकीय प्रकृति का है। जबकि 3 वर्ष की समय-सीमा का प्रावधान न्यायिक प्रकृति का है। लिहाजा उन्हें आवेदन निरस्त करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने तर्क से सहमति जताते हुए सहायक श्रमायुक्त का उक्त आदेश निरस्त कर दिया।