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raksha bandhan story – भविष्य पुराण में बताई गई है रक्षाबंधन की यह कथा

locationजबलपुरPublished: Jul 18, 2018 03:05:41 pm

Submitted by:

deepak deewan

रक्षाबंधन की कथा

rakhi 2018

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जबलपुर। रक्षाबंधन यानि राखी का त्यौहार बहन-भाई के प्यार का पर्याय बन चुका है। यह त्यौहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और गहरा करने वाला सबसे बड़ा पर्व है। इस दिन भाई की कलाई पर बहन राखी बांधती है। रेशम की यह डोर या धागा बहन-भाई के अटूट और पवित्र प्रेम का बंधन बांध देता है। उस साधारण से नजर आने वाले धागे में भाई-बहन के प्यार की शक्ति निहित होती है। रक्षाबंधन पर जहां एक ओर भाई अपनी बहन की रक्षा करने और उसके प्रति अपने दायित्व निभाने का वचन देता है वहीं दूसरी ओर बहन अपने भाई की लंबी उम्र के लिये व्रत रखती है।
श्रावण मास की पूर्णिमा को यह पर्व मनाया जाता है। अपने भाई की कलाई पर राखी बांधने के लिये हर बहन रक्षा बंधन के दिन का इंतजार करती है। इससे पहले सावन के महीने भर इस पर्व की तैयारियां की जाती हैं। इस पर्व को मनाने के पीडे अनेक कहानियां वर्णित हैं। वैसे मूलत: यह भाई-बहन का त्यौहार नहीं बल्कि विजय प्राप्ति के किया गया रक्षा बंधन है। इसका भविष्य पुराण में विस्तृत उल्लेख किया गया है। भविष्य पुराण में रक्षाबंधन के त्यौहार की जो कथा उल्लेखित की गई है वह इस प्रकार है
रक्षा विधान संस्कार के बारे में बताया
एक बार देवताओं और असुरों में भयंकर युद्ध छिड़ा हुआ था। सुर-असुरों का यह संघर्ष लगातार 12 साल तक चलता रहा और अंतत: असुरों ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर ली। दानवों ने देवराज इंद्र के सिंहासन सहित तीनों लोकों को जीत लिया। कड़ी हार से देवराज इंद्र घबरा उठे और वे देवताओं के गुरु, ग्रह बृहस्पति के पास के गए। देवराज इंद्र ने तात्कालिक परिस्थितियों के अनुरूप किए जानेवाले कार्यों के बारे में देवगुरु बृहस्पति से सलाह मांगी। बृहस्पति ने इंद्र को रक्षा विधान संस्कार के बारे में बताया और इन्हें मंत्रोच्चारण के साथ रक्षा विधान करने को कहा।
पा लिया था खोया हुआ राज्य
गुरू बृहस्पति ने श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षा विधान संस्कार आरंभ किया। इस रक्षा विधान के दौरान मंत्रोच्चारण से रक्षा पोटली को मजबूत किया गया। पूजा के बाद इस पोटली को देवराज इंद्र की पत्नी शचि जिन्हें इंद्राणी भी कहा जाता है ने इस रक्षा पोटली के देवराज इंद्र के दाहिने हाथ पर बांधा। इसकी ताकत से ही देवराज इंद्र असुरों को हराने और अपना खोया राज्य वापस पाने में कामयाब हुए।
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