महात्मा कबीर एक अध्यात्म साधक थे, वे अपनी आध्यात्मिक साधना की अनुभूतियों के माध्यम से तर्क पूर्ण शैली में अपनी छोटी-छोटी क्षणिकाओं में भी गम्भीरबात कह देते थे। भक्त ह्रदय श्री सूरदास जी श्रीकृष्ण के सौन्दर्य,माधुर्य और वात्सल्यभाव के निरूपण में निरंतर निमग्न रहते थे।श्रीकृष्ण की रूप माधुरी का अनुभव श्रीकृष्ण भक्तों के ह्रदयों में करा देने में सूरदास जी सिद्धहस्त महापुरुष हैं तो गुरुनानक देव जी ज्ञानी संत के साथ-साथ,सामाजिक संघर्ष के दौर के अनुभवी सन्त होने के कारण परिस्थिति जन्य कर्त्तव्यबोध जागरण कराने वाले महापुरुष सिद्ध हुए। श्रीकृष्ण भक्ति में निरंतर निमग्ना श्रीकृष्णोपासिका मीराबाई तो भक्तिरस की रसधार में ऐसी डूबी कि”मैं तो प्रेम दिवाणी मेरो दरद न जाणै कोय”मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई,जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई” इतना ही नहींजित देखूँ तित श्याममयी हैकी रसानुभूति सेश्रीकृष्णमयी ही हो गई।
उपर्युक्त भक्तों ने जो कुछ भी कहा-गाया अथवा लिखा या इनके मुख से निकला वह कहीं किसी के द्वारा संगृहीत किया गया वह एक विपुल व समृद्ध साहित्य के रूप में अक्षय निधि, विश्व धरोहर”भक्ति साहित्य” हो गया।इसी क्रम मेंश्री गोस्वामी तुलसीदास कृत”श्रीरामचरितमानस तो अनुपम साहित्य सिद्ध हुआ;उन्होंने “रामचरितमानस”के विभिन्न स्थलों में अपनेह्रदयस्थ रामकथा रूपी बीज के पड़े रहने का भी उल्लेख किया हैऔर श्रीराम कृपा के माध्यम से उसके अंकुरित होने का उल्लेख भी किया है।श्रीरामचरितमानस की रचना शैली में उन्होंने श्रीरामकथा सरिता के मूलोद्गम् का भी संकेत करते हुये श्रीरामकथा परम्परा का भी स्मरण किया है।श्रीराम अनंत हैं तो श्रीराम कथा भी अनंत है”हरि अनंत हरि कथा अनंता -कहहिं सुनहिं बहु विध सब संता”।श्री रामचरित मानस में कथा का शुभारंभ भी जिज्ञासा से हुआ है *श्रीराम कौन हैं”? श्री राम कौन हैं,यह प्रश्न शाश्वत् तथा इस प्रश्न का उत्तर भी पारम्परिक है।
उपर्युक्त प्रश्नजन्य शाश्वत् और उत्तरजन्य परम्पराअपने आरम्भिक काल से अद्यावधि अक्षुण्ण और प्रासंगिक है इसीलिए साहित्य मनीषी साहित्य को विचारों का,चिंतन का और जिज्ञासा का अनुगामी मानते आये हैं।
श्री गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरितमानस के मंगलाचरण एवं मानस की आरम्भिक भूमिका में तथा रामायणजी की आरती और अपनी अन्य साहित्यिक रचनाओं(जिसे हम तुलसी साहित्य के नाम से जानते है) में इस तथ्य का उल्लेख किया है कि श्रीरामचरितमानस मेरी परम्परा से प्राप्त धार्मिक,पौराणिक साहित्य पर आधारित श्री रामकथा के रूप में शोध ग्रन्थ है। मंगलाचरण का एक पद देखने से यह बहुत स्पष्ट होजाता है।
नाना पुराण निगमागम सम्मतं यद् रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोsपि
छहों शास्त्र सब ग्रन्थन को रस
कागभुशुण्डि गरुड़ के हिय की
तथा
व्यास आदिकविबर्ज बखानी
अतः यह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि गोस्वामी श्री तुलसीदासजी महाराज ने अपनी मौलिकता में और अपनी कल्पना शीलता में,सृजन धर्मिता का निर्वहन किया है।ह्रदयस्थ श्रीराम भक्ति के आश्रय में तथा भूतभावन भगवान् शिव की कृपा से तत्कालीन उपलब्ध भारतीय पारम्परिक संस्कृतसाहित्य का आधार लेकरश्रीरामचरितमानस को भाषाबद्ध किया है।रामायण के सृजन में उन्हें शोध की सामग्री,महर्षिवेदव्यास प्रणीत पुराण,गीता,उपनिषद् आदि साहित्य से प्राप्त हुई है। अस्तु:- श्रीरामचरितमानस गोस्वामी श्री तुलसीदासजी का बहुमूल्य “शोध-ग्रन्थ”है ,जिसकी संरचना देश,काल,परिस्थिति आधारित होते हुये भी कालजयी ,सार्वभौमिक मृत्युञ्जयी साहित्य है।