स्कूल लौट रही थीं बच्चियां
अभियोजन के अनुसार शहडोल जिले के अनूपपुर थानांतर्गत निवासी सात-सात साल की दो व आठ साल की एक बच्ची छह मार्च 2005 को स्कू ल गईं थीं। स्कूल छूटने के बाद तीनों पास के मंदिर में खेलने चली गईं। उसी समय मनटोलिया ग्राम निवासी 39 वर्षीय डमरू उर्फ शिवसेवक कोल वहां आया। उसने तीनों बच्चियों को दुकान में कुछ खिलाने और पैसे देने का लालच दिया। पिता के समान उम्र के डमरू की बातों पर मासूमों ने भरोसा कर लिया और उसकी साइकिल पर बैठ गईं। डमरू उन्हें अपनी साइकिल पर बैठा कर पास के तालाब ले गया। वहां उसने बारी-बारी से तीनों के साथ दुष्कर्म किया। इसके बाद वह वहां से भाग निकला।
रो-रोकर बतायी हकीकत
घटना के बाद जैसे-तैसे तीन बच्चियां अपने घर पहुंचीं। उन्हें रक्त रंजित और हाल-बेहाल देखकर परिजनों ने पूछताछ की, इस पर बच्चियांं उन्हें आप बीती सुनाई। मासूम बच्चियों के साथ इस तरह के पैशाचिक कृत्य ने लोगों को हैरान कर दिया। लोग स्तब्ध रह गए। बच्चियों के माता-पिता ने इसकी रिपोर्ट अनूपपुर थाने में दर्ज करायी। पुलिस ने सक्रियता पूर्ण कार्रवाई करते हुए आरोपित को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया।
सुनाई 10 साल की सजा
शहडोल जिला न्यायालय से आरोपित डमरू को जेल भेज दिया गया। इसके बाद 26 अगस्त 2006 को शहडोल एडीजे की अदालत ने इस मामले में एक अहम फैसला दिया। साक्ष्यों के आधार पर डमरू को तीनों बच्चियों के साथ दुष्कर्म का दोषी माना गया। कोर्ट ने उसे आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दस वर्ष सश्रम कारावास की सजा सुनाई। शहडोल जिला न्यायालय के इसी फैसले को अपील के जरिए यहां एमपी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।
कोर्ट ने यह कहा
प्रकरण में वकील की तरफ से तर्क दिया गया कि इस मामले का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है। प्रकरण की सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि मामले में भले चश्मदीद गवाह नहीं थे, लेकिन तीनों बच्चियों के एक जैसे बयान झूठे नहीं माने जा सकते। वहीं बच्चियों का मेंडिकल परीक्षण करने वाली डॉक्टर ने भी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि तीनों के साथ दुष्कर्म हुआ था। कोर्ट ने कहा कि आरोपी की आयु घटना के समय 39 वर्ष थी, लिहाजा उसके आगे बच्चियां मजबूर थीं और प्रतिकार नहीं कर सकीं। इसलिए उन्हें बाहरी चोटें नहीं आयीं। इस आधार पर मप्र हाईकोर्ट ने तीन मासूम बच्चियों के साथ रेप के तेरह साल पुराने मामले पर अहम फैसला दिया। जस्टिस अतुल श्रीधरन की सिंगल बेंच ने जिला अदालत द्वारा आरोपित को दी गई सजा पर अपनी मोहर लगा दी। उसे 10 साल के सश्रम कारावास को बरकरार रखा है।