सोशल मीडिया पर सच नहीं
प्रो. वाजपेयी ने बताया कि दवा को लेकर इन दिनों सोशल मीडिया पर तरह-तरह के मैसेज वायरल हो रहे हैं। इसके साथ ही हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन से जुड़ी कई बातें भी शेयर की जा रही हैं। सोशल मीडिया पर जो भी है वह सच नहीं है। यह दवा न ही भारत में बनी है और न ही इसका भारत से किसी तरह का कोई जुड़ाव है। लोग इस दवा को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन समझ रहे हैं, वह दरअसल आयोडोक्लोर हाइड्रोक्सीक्वीन है। इन दोनों का नाम काफी मिलता •ाुलता है इसलिए लोगों में इस तरह का कन्फ्यूजन हो रहा है। आयोडोक्लोरहाइड्रोक्सीक्वीन का अविष्कार 1892 में आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय ने किया था।
65 वर्ष पूर्व खोजी दवा
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन लगभग 65 वर्ष पूर्व खोजी हुई दवा है। यह दवा क्लोरोक्वीन का ही एक रूप है, जिसका प्रयोग मलेरिया के इलाज में हुआ था। जब कोरोना का भयावह रूप विश्व में देखने को मिला तो फ्रांस के वैज्ञानिकों ने इसका प्रयोग कुछ मरीजों पर किया जो सफल रहा।
बिना परामर्श के दवा खाना खतरनाक
एक्सपर्ट के अनुसार हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन बिना चिकित्सक के परामर्श के खाना घातक हो सकता है। उल्टी आना, दस्त लगना और दिल का दौरा पडऩे जैसी स्थिति हो सकती है। वैज्ञानिकों और डॉक्टर्स का मानना है कि यह दवा वायरस का इलाज नहीं कर सकती, लेकिन यह वायरस से लडऩे में मदद करती है। यह दवा एंडोसोम की अम्लीयता को कम कर देती है। जिसके कारण वायरस साइंटोप्लाजम में प्रवेश नहीं कर पाता है।