जबलपुर। मकर संक्रांति पर दान-पुण्य, स्नान का पर्व मात्र नहीं है, बल्कि यह जीवन में परिवर्तन लाने का भी पर्व है। आप आसान उपाय अपनाकर अपनी किस्मत के बंद दरवाजों को खोल सकते हैं। मकर संक्रांति का यह पावन पर्व महासंयोग लेकर आ रही है। आचार्य नीरू महाराज के अनुसार इस दिन हमें पंचशक्ति साधना करने का अवसर मिलता है, जो सम्पूण्र वर्ष मनोवांछित फल प्रदान करता है। मकर संक्रांति के दिन गणेशजी, शिवजी, विष्णुजी, महालक्ष्मी और सूर्य की साधना संयुक्त रूप से करने का वर्णन प्राचीन धर्मग्रंथों में विस्तार से मिलता है। पंचशक्ति की साधना से ग्रहों को अपने अनुकूल बनाने का पर्व मकर संक्रांति है। स्नान, दान के साथ आप पंचदेवों की पूजा से सोये भाग्य को जगा सकते हैं।
स्नान का मान
कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करने पर सभी कष्टों का निवारण हो जाता हैं। इसीलिए इस दिन दान, तप, जप का विशेष महत्व हैं। ऐसा मान्यता है कि इस दिन को दिया गया दान विशेष फल देने वाला होता है।
मकर संक्रांति का ऐतिहासिक महत्व
माना जाता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अतः इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता हैं। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मकर-संक्रांति से प्रकृति भी करवट बदलती हैं। इस दिन लोग पतंग भी उड़ाते हैं। उन्मुक्त आकाश में उड़ती पतंगें देखकर स्वतंत्रता का अहसास होता है।
क्या करें, क्या न करें
– इस दिन प्रातः काल उबटन लगाकर तीर्थ के जल से मिश्रित जल से स्नान करें।
– तीर्थ का जल उपलब्ध न हो तो दूध् दही से स्नान करें।
– तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है।
– स्नान के उपरांत नित्य कर्म तथा अपने आराध्य देव की आराधना करें।
– पुण्यकाल में दांत मांजना, कठोर बोलना, फसल तथा वृक्ष का काटना, गाय, भैंस का दूध निकालना कार्य नहीं करना चाहिए।
– इस दिन पतंगें उड़ाए जाने का विशेष् महत्व है।
मंत्र का करें जाप
-ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ति प्रचोदयात्!
-ॐ महादेवाय विद्महे रुद्रमूर्तये धीमहि तन्नो शिव प्रचोदयात!
-ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु: प्रचोदयात!
-ॐ महालक्ष्मयै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात!
-ॐ भास्कराय विद्महे महातेजाय धीमहि तन्नो सूर्य प्रचोदयात!