पेड़-पौधों की होगी टैगिंग टीएफआरआई द्वारा कान्हा के दस हैक्टेयर प्लॉट में यह रिसर्च शुरू कर दी गई है। प्लॉट को एक-एक हेक्टेयर के दस अलग-अलग हिस्सों में बांटा गया है। पत्थर लगाए गए हैं ताकि प्लॉट की पहचान आसानी से की जा सके। यहां अब तक लगभग पांच हजार से अधिक पौधों की टैेगिंग की जा चुकी है। इनमें घास के तिनके से लेकर झाडिय़ां तक शामिल हैं। टैेग किए गए एक-एक पेड पौधों में कितनी पत्तियां हैं और उनमें क्या परिवर्तन हो रहे हैं, इसका अध्ययन किया जा रहा है
पहले चरण में यह जुटा रहे जानकारी रिसर्च के पहले चरण में यह जानकारी जुटाई जा रही है कि जंगलों में रिजनरेशन किस तरह से और कितना हो रहा है, इसके साथ ही जमीन और उनमें पैदा होने वाले कीड़ों, नमी और अन्य प्राकृतिक चीजों की क्या स्थिति है, इतना ही नहीं पेड पौधों की विभिन्न बीमारियों, फंगस और पॉलीनेटर डिस्टर्ब होने का डाटा पहले चरण में जुटाया जा रहा है।
यह उपकरण किए गए इंस्टॉल ट्री रिंग एनालाइसर, ट्री गैस एनालाइसर, पोर्टेबल प्रकाश संष्लेशण सिस्टम, वेदर स्टेशन, पेड़ की उम्र गिनने के लिए रिंग, पेड की लंबाई मापने के लिए हिप्सोमीटर, प्लॉट की ऊंचाई मापने के लिए अल्टीमीटर, केनोपी मापने के लिए ऑप्टीकल डेन्सियोमीटर, डाटा मैनेजमेंट व डॉक्यूमेन्टेशन के लिए डाटा मैनेजमेंट सिस्टम, डिजीटल एलएलआर कैमर, जीपीएस, स्वाइल रेस्पिरेशन मीटर, लेसर रिंग फाइन्डर, पत्तियों का हरापन मापने के लिए क्लोरोफिल मीटर, लीफ स्केनर।
भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद देहरादून द्वारा देश के दस स्थानों पर रिसर्च कराया जा रहा है। इनमें कान्हा भी शामिल है। टीएफआरआई द्वारा कान्हा में दस हेक्टेयर के प्लॉट पर ग्रीन गैस हाऊस का पर्यावरण और पर्यावरण परिवर्तन का जंगलों पर क्या असर पड़ रहा है, इसकी रिसर्च की जा रही है। पहले फेज में बेस लाइन डाटा इकट्ठा किया जा रहा है। यह रिसर्च कई सालों तक जारी रहेगी।
डॉ.अविनाश जैन, फॉरेस्ट इकॉलॉजी एंड क्लाइमेट चेंज डिपार्टमेन्ट, टीएफआरआई