जबलपुर के विजय यादव और समीर खान के इनकाउंटर के बाद भी खुलेआम घूम रहे उनके गुर्गे
जबलपुर•Aug 20, 2019 / 08:02 pm•
shyam bihari
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जबलपुर। महाकोशल में दहशत का दूसरा नाम कहे जाने वाले विजय यादव और उसके गुर्गे समीर खान का इनकाउंटर में मारा जाना बड़ी घटना थी। पुलिस को लगा था कि विजय यादव की मौत के बाद उसका गैंग खत्म हो जाएगा। लेकिन, विजय और समीर की अंतिम यात्रा में मंगलवार को जिस तरह से लोगों का जमावड़ा हुआ, उससे पुलिस के कान खड़े हो गए हैं। पुलिस अफसरों को दिन भी सुरक्षा-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पसीना बहाना पड़ा। पूरे शहर के चौक-चौराहों पर पुलिस ही नजर आ रही थी। खासकर पुलिस वाले आपस में चर्चा कर रहे थे कि क्या दिन आ गए हैं? पुलिस वालों का कहना था कि हिस्ट्रीशीटरों के मारे जाने के बाद लोग उनके पक्ष में नारेबाजी करें, तो यह चिंताजनक हालत कहे जा सकते हैं। हत्या, लूट, चोरी करने वालों के प्रति सहानुभूति कैसे दिखाई जा सकती है? पुलिस वालों के सभी सवालों का जवाब तो लोग नहीं नही दे रहे हैं। लेकिन, बदमाशों के गुर्गे, जो पुलिस रिकॉर्ड में नहीं है, का कहना है कि यह इनकाउंटर जिस तरह हुआ है, उसमें साजिश की बू आ रही है। दोनों बदमाशों के परिजन का तो खुलेआम आरोप है कि पुलिस ने धोखे से मारा है। समीर खान के परिजन तो दावा कर रहे हैं कि उसे नरसिंहपुर यह कहकर बुलाया गया था कि सरेंडर कर दिया जाएगा। उधर, विजय यादव के परिजन कह रहे हैं कि इस इनकाउंटर में बेहद गहरा राज छिपा है।
इससे गलत संदेश जाएगा
जबलपुर शहर में संगठित अपराध होते जरूर रहे हैं। लेकिन, इसका ग्राफ कम रहा है। क्योंकि, आमतौर पर अपराधियों को संरक्षण नहीं मिलता। लेकिन, इन दोनों बदमाशों की शव यात्रा में जिस तरह की भीड़ दिखी, वह चौंकाने वाली है। सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर अपराधी अच्छा कैसे हो सकता है? अपराधी के पक्ष में खड़े होने का मतलब है कि आम लोगों को भरोसा पुलिस पर कम हुआ है। अपराधी के पक्ष में नारे कैसे लग सकते हैं? इसका मतलब यह हुआ कि आम लोग भी अपराधियों की कारस्तानियों को गलत नहीं मान रहे? इससे तो समाज में गलत संदेश जाएगा।