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संजीवनी बूटी देने वाली पहाडिय़ों को बेरहमी से खत्म किया, शहर बना गर्म तवा तो याद आई हरियाली

locationजबलपुरPublished: Jun 03, 2019 01:23:16 am

Submitted by:

shyam bihari

सिमटते ग्रीन बेल्ट से बढ़ी चिंता : नगर निगम प्रशासन बना रहा पौधरोपण की कार्ययोजना

संजीवनी बूटी देने वाली पहाडिय़ों को बेरहमी से खत्म किया, शहर बना गर्म तवा तो याद आई हरियाली

madan mahal

मदन महल पहाड़ी
– 306 हेक्टेयर है क्षेत्रफल
– 0.065 हेक्टेयर भूखंड पुरातत्व विभाग की ओर से संरक्षित
– 116.482 हेक्टेयर वन विभाग की ओर से संरक्षित
– 2800 कब्जे थे पहाड़ी पर
जबलपुर। शहर का तापमान पिछले कई दिनों से 40 डिग्री सेल्सियस के ऊपर है। शहरवासी तेज धूप और भीषण गर्मी से बेहाल हैं। पर्यावरणविद् भी शहर में सिमटते ग्रीन बेल्ट पर चिंता जता चुके हैं। उनका कहना है कि शहर की पहाडिय़ां ऑक्सीजन टैंक का काम करती रही हैं। लेकिन, पहाडिय़ों पर पेड़ों का एक तरह से ‘कत्लेआमÓ किया गया। संजीवनी बूटी की तरह शहर की कई प्राकृतिक समस्याओं का इलाज करने वाले हरे-भरे जंगल की जगह कॉन्क्रीट का जंगल बसा दिया गया। इससे स्थानीय माइक्रो क्लाइमेट को भारी नुकसान पहुंचा। मदन महल पहाड़ी से अतिक्रमण हटाए जा रहे हैं। पहाडिय़ों पर फिर से सघन पौधरोपण कर शहर के ऑक्सीजन टैंक को भरने की आवश्यकता है। इसके लिए नगर निगम प्रशासन पौधरोपण की कार्ययोजना तैयार कर रहा है।
पहाड़ी पर तीन भाग में हो सकता है पौधरोपण
प्रथम भाग : केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अंतर्गत संरक्षित मदन महल किला और उससे संरक्षित भूमि खसरा नम्बर 192 में 0.065 हेक्टेयर भूखंड है। संरक्षित स्मारक की 100 मीटर की परिधि निषिद्ध क्षेत्र होती है। इसमें किसी भी प्रकार के निर्माण की अनुमति नहीं होती। 100 मीटर के बाद 200 मीटर अर्थात स्मारक से 300 मीटर की परिधि में विनियमित क्षेत्र होता है। इसमें विशेष परिस्थिति में निर्माण की अनुमति होती है। इस क्षेत्र में कोई कब्जा नहीं है। स्मारक के आसपास वृहद स्तर पर पौधरोपण किया जा सकता है।
द्वितीय भाग : 116.482 हेक्टर जमीन को वन विभाग ने संरक्षित वन घोषित किया है। यहां पर अतिक्रमण नहीं है। वन विभाग विशेष प्रोजेक्ट के तहत यहां अलग-अलग सेक्टर बनाकर विविधतापूर्ण वन विकसित कर सकता है। जानकारों के अनुसार पहाड़ी पर औषधीय पौधे भी लगाए जा सकते हैं।
तृतीय भाग : यह भूखंड राजस्व विभाग के नाम पर है। कुछ भूखंड निजी स्वामित्व का है। इसमें निजी स्वामित्व का हिस्सा छोड़कर राजस्व की जमीन के अन्य हिस्से पर अतिक्रमण है। इसमें से शारदा मंदिर छोर, बैलेंसिंग रॉक छोर, सूपाताल, देवताल, चौहानी श्मशान, त्रिपुरी चौक से गढ़ा थाना के समीप के अतिक्रमण हटाए जा चुके हैं। सड़क से लगा पहाड़ी का ह हिस्सा पूरी तरह खाली हो गया है। यहां फेंसिंग भी की जा रही है। जमीन का समतलीकरण भी हो रहा है। सघन पौधरोपण कर पहाड़ी के इस हिस्से को बड़े हरित क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा सकता है।
पट्टेधारी
– 07 बदनपुर में, किले के 100 से 300 मीटर के दायरे में
-06 पुरवा में किले के 300 मीटर दायरे के बाहर
– 31 गढ़ा में किले के 300 मीटर दायरे के बाहर
धार्मिक स्थल
– 02 प्राचीन धार्मिक व सामाजिक स्थल
– 15 धार्मिक स्थल हैं, जो 10 से 100 साल पुराने हैं।
़पहाड़ी पर काबिजों को विस्थापित कर पुनर्वास के लिए उपलब्ध कराई जमीन
– 3.260 हेक्टेयर खसरा नम्बर 74 में नगरीय अतिशेष मद से
– 0.069 हेक्टेयर खसरा नम्बर 218/2 में नजूल मद से
– 0.539 हेक्टेयर खसरा नम्बर 219 में नजूल मद से

मदन महल पहाड़ी समेत अन्य पहाडिय़ां पूर्व में नगर का ‘ऑक्सीजोनÓ थीं। पेड़ों की कटाई और अवैध निर्माण से स्थानीय स्तर पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा है। पहाडिय़ों पर वृहद स्तर पर पौधरोपण क र पौधों को संरक्षित कर लिया जाए तो स्थानीय माइक्रो क्लाइमेट को फिर से संतुलित किया जा सकता है।
डॉ. पीआर देव, वैज्ञानिक

मदन महल पहाड़ी की कब्जा मुक्त हुई जमीन पर फेंसिंग कराई जा रही है। मानसून सीजन में पहाड़ी पर वृहद स्तर पर पौधों का रोपण होगा। इसमें सामाजिक संगठनों, शिक्षा संस्थानों और निजी क्षेत्र की भी मदद ली जाएगी।
जीएस नागेश, अपर आयुक्त, नगर निगम

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