scriptmp high court : डॉक्टर्स को झटका, पीजी करने के लिए ग्रामीण क्षेत्र में करनी ही पड़ेगी सेवा | Shock to doctors, will have to do service in rural area to do PG | Patrika News

mp high court : डॉक्टर्स को झटका, पीजी करने के लिए ग्रामीण क्षेत्र में करनी ही पड़ेगी सेवा

locationजबलपुरPublished: Aug 29, 2019 01:06:48 am

Submitted by:

sudarshan ahirwa

मप्र हाईकोर्ट ने की याचिकाएं निरस्त

Jabalpur High Court

Jabalpur High Court

जबलपुर. मप्र हाईकोर्ट से एमबीबीएस पास करने के बाद मेडिकल पीजी या सुपर स्पेशियालिटी कोर्स करने के इच्छुक डॉक्टर्स को झटका लगा है। एक्टिंग चीफ जस्टिस आरएस झा व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बेंच ने सुको के फैसले के आधार पर पीजी या सुपर स्पेशियालिटी कोर्स के लिए एक साल ग्रामीण इलाके में सेवा की अनिवार्यता को चुनौती देने वाली याचिकाएं निराकृत कर दीं। कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय का हवाला देकर कहा कि सरकारी डॉक्टरों को पीजी करने के बाद एक साल ग्रामीण क्षेत्र में सेवा देनी ही होगी।

यह है मामला
नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज जबलपुर में पीजी कर रहे डॉक्टर गौरव अग्रवाल, रीवा मेडिकल कॉलेज के डॉ वरुण शर्मा, जबलपुर के ही वैभव यावलकर सहित कुल 131 याचिकाओं के जरिए 200 से अधिक डॉक्टर्स ने राज्य सरकार के इन सर्विस कैंडिडेट के मेडिकल पीजी कोर्स प्रवेश नियम को चुनौती दी थी। याचिकाओं में कहा गया कि इस नियम के अनुसार शासकीय सेवारत एमबीबीएस डॉक्टर को पीजी कोर्स में प्रवेश के पूर्व इस बात का अभिवचन देना होता है कि वे पीजी कोर्स करने के बाद कम से कम एक साल प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में अनिवार्य रूप से सेवाएं देनी होंगी। इस शर्त का पालन करवाने के लिए सरकार प्रवेश के इच्छुक अभ्यर्थी से उसके मूल दस्तावेज जमा करवाती है। साथ ही छात्र को बांड भी भरना होता है। इस शर्त को असंवैधानिक बताते हुए निरस्त करने का आग्रह किया गया।

सुको ने 19 अगस्त को कर दीं याचिकाएं खारिज
याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दिया गया कि यह शिक्षा के संवैधानिक अधिकार का हनन है। राज्य सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि गत 19 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट इस संबंध में दायर याचिकाएं खारिज कर चुकी है। सुको के अनुसार सरकारी डॉक्टरों को पीजी करने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं उपलब्ध करानी ही होंगी। लिहाजा याचिकाएं सारहीन हैं। तर्क को मंजूर कर कोर्ट ने सभी याचिकाएं निरस्त कर दीं। मप्र मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी की ओर से अधिवक्ता सतीश वर्मा ने पक्ष रखा।

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