उन्होंने आगे कहा कि सतीजी दक्ष पुत्री हैं। वे भगवान शिव से विवाह होने पर भी रामकथा का आनंद नहीं ले पाती हैं। उन्होंने सुना ही नहीं, क्योंकि उनके हृदय में श्रद्धा वृत्ति की जगह संशय या भ्रम था। सती जब अगले जन्म में राजा हिमांचल के घर में जन्म लेती हैं तो दीर्घकाल की तपस्या के पश्चात भगवान शिव को पुन: पति के रूप में प्राप्त करती हैं। तब रामकथा की जो अद्भुत रसधारा संसार के समक्ष बहती है, उससे भगवती उमा स्वयं धन्य हुईं, संसार के जीव आज भी धन्य हो रहे हैं।
श्रद्धा के प्रकार बताए
मंदाकिनी दीदी ने श्रद्धा के तीन प्रकार बताए- सात्विक, राजसिक और तामसिक। परमार्थ की प्राप्ति के लिए सनातन धर्म में अनगिनत मार्ग हैं, पर प्रमुख रूप से मानस में ज्ञान, भक्ति और कर्म की चर्चा की गई है। सभी मार्गों में श्रद्धा की आवश्यकता है। ज्ञान मार्ग की साधना उत्तर कांड में की गई है। उसमें गाय को श्रद्धा का प्रतीक बताया गया है। कथा व्यास का पूजन आशा बड़ेरिया, राजीव बड़ेरिया, लेखराम रैकवार, विश्वनाथ नामदेव, अजय, प्रशांत गुप्ता, महेश बजाज, मीना गुप्ता, सरस्वती, सुदामा आदि ने किया।