11 मेगावॉट है क्षमता
जीसीएफ इस्टेट में पाटबाबा मंदिर पहाड़ी पर 10 मेगावॉट क्षमता वाले सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट का उद्घाटन ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन एसके चौरसिया ने किया था। उस समय माना जा रहा था कि जल्द ही बिजली उत्पादन शुरू होगा। लेकिन 17 माह बाद भी उत्पादन शुरू नहीं हो सका है। जीसीएफ प्रशासन ने ट्रांसमिशन लाइन को अंडरग्राउंड करने का जिम्मा बीईएल को दिया है, जो अब तक पूरा नहीं हुआ है।
छह करोड़ से अधिक का नुकसान सोलर पार्क से जीसीएफ को 25 साल तक 4.76 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली मिलनी है। फैक्ट्री के तत्कालीन वरिष्ठ महाप्रबंधक एसपी सिंह ने बताया था कि जीसीएफ को हर महीने 1.10 करोड़ रुपए बिजली बिल चुकाना पड़ता है। सोलर पार्क से सस्ती बिजली मिलने पर फैक्ट्री को हर माह 30-40 लाख रुपए की बचत होगी। इस हिसाब से अब तक जीसीएफ प्रशासन 18.70 करोड़ रुपए बिजली बिल दे चुका है। यदि फैक्ट्री को कम दर पर बिजली मिलती तो 12 करोड़ रुपए ही चुकाने पड़ते। अर्थात् छह करोड़ रुपए की बचत हो सकती थी। उत्पादन शुरू होने से बीईएल को भी फायदा होता। क्योंकि, जरूरत की बिजली फैक्ट्री को देने के बाद शेष बिजली वह बाजार दर पर शासन को देता।
सोलर पार्क जैसे वृहद प्रोजेक्ट के लिए कई प्रकार की अनुमति लेनी पड़ती है। ग्रिड से ट्रांसमिशन लाइन जोडऩे की अनुमति लेने और अंडरग्राउंड केबल डालने में समय लगा। अनुमति मिल गई है। केबल का काम भी पूर्णता की ओर है। जल्द ही बिजली उत्पादन और वितरण शुरू होगा।
हेमंत साहू, प्रोजेक्ट मैनेजर, बीईएल