यह है मामला
भोपाल निवासी अजय दुबे ने जनहित याचिका में कहा कि कि राज्य सरकार ने 3 अगस्त 2019 को मध्यप्रदेश राज्य वन्यप्राणी बोर्ड का पुनर्गठन किया। लेकिन इसेके लिए निर्धारित प्रावधानों का पालन नहीं किया। वाइल्ड लाइफ के विशेषज्ञों की अनदेखी करते हुए मनमाने तरीके से सदस्य चयनित कर लिए गए। इनमें से अधिकांश कांग्रेस पार्टी से जुड़े हैं। अधिवक्ता आदित्य संघी ने तर्क दिया कि वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 6 के तहत सरकार ने आवश्यक नियम नहीं बनाए।
दो सदस्य अभिरुचित पर, एसटी का भी सदस्य नहीं
राशिद किदवई व केके सिंह नामक दो ऐसे गैर सरकारी सदस्यों को रखा गया, जिनके पास पर्यावरणविद्/ वन्यप्राणी संरक्षण के अनुभव की जगह महज वन्यप्राणियों को लेकर अभिरुचि के प्रमाणपत्र हैं। चेयरमैन सहित जिन 30 सदस्यों का चयन किया गया है, उनमें एक भी गैर सरकारीअनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है। जबकि नियमानुसार अनुसूचित जनजाति (एसटी) के 2 सदस्य होना आवश्यक है। बोर्ड को भी भंग कर राजनीतिक सिफारिशों व भाई-भतीजावाद के चलते हुई नियुक्तियां निरस्त करने का आग्रह किया गया।