दुल्हन की तरह सजाया गया था जबलपुर
कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन को लेकर जबलपुर को दुल्हन की तरह सजाया गया था। दूसरी बार कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए सुभाषचंद बोस के स्वागत की कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अभूतपूर्व तैयारी की थी। इसके अलावा महात्मा गांधी, कांग्रेस के दूसरे बड़े नेताओं सरदार बल्लभ भाई पटेल, जवाहरलाल नेहरू, गोविंद बल्लभ पंत, कृपलानी के स्वागत के लिए भी जबलपुर आतुर था। कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष बाबू के लिए विशेष रूप से हाथियों का इंतजाम किया गया था। कांग्रेस के दूसरे बड़े नेताओं के लिए रथ सजाए गए थे। इस पूरे आयोजन की अगुआई कर रहे थे जबलपुर के कद्दावर नेता सेठ गोविंद दास। उनकी देखरेख में त्रिपुरी अधिवेशन को ऐतिहासिक बनाने के लिए जबलपुर ने पूरी तरह से अपना दम-खम झोंक रखा था।
जब एंबुलेंस से अधिवेशन स्थल पहुंचे सुभाष
त्रिपुरी अधिवेशन से पहले सभी समाचार माध्यमों में कांग्रेस के दूसरी बार अध्यक्ष चुने गए सुभाषचंद बोस के बीमार होने की खबरें प्रकाशित, प्रसारित हो रहीं थीं। उनके स्वागत के लिए जबलपुर स्टेशन पर बड़ी संख्या में कांग्रेस के बड़े नेता और कार्यकर्ता मौजूद थे लेकिन दुविधा थी कि वे पहुंचेंगे कि नहीं, क्योंकि इसके पहले 20-21 फरवरी को वर्धा में हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भी बोस मुश्किल से पहुंच सके थे। सुभाष चंद बोस कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेने के लिए अंतत: ट्रेन से जबलपुर पहुंचे, लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ताओं को थोड़ी सी मायूसी हाथ लगी। सुभाषचंद बोस गंभीर रूप से बीमार थे और डॉक्टरों की सलाह को दरकिनार करके त्रिपुरी अधिवेशन में भाग लेने के लिए पहुंचे थे। सुभाष बाबू को स्टेशन पर हाथी से अधिवेशन स्थल तक ले जाने की तैयारी थी लेकिन उन्हें एंबुलेंस से ले जाना पड़ा। जिस हाथी से सुभाष बाबू को ले जाना था उस पर उनकी फोटो रखी गई। जबलपुर की गलियों में हजारों लोग सुभाष बाबू के दर्शन के लिए लालायित थे लेकिन उन्हें फोटो के दर्शन करके ही संतोष करना पड़ा।
त्रिपुरी अधिवेशन में जब आया उबाल
यूं तो त्रिपुरी अधिवेशन नर्मदा की कल-कल धारा के किनारे हुआ था लेकिन इसमें बराबर उबाल आता रहा। कांग्रेस का त्रिपुरी अधिवेशन काफी हंगामेदार रहा। सुभाषचंद बोस ने महात्मा गांधी की इच्छा के विरुद्ध कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए ताल ठोंक दी थी। गांधी जी ने डा. पट्टाभि सीतारमैया को कांग्रेस अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया था। त्रिपुरी अधिवेशन से ठीक एक महीने पहले हुए चुनाव ने कांग्रेस में भूचाल ला दिया था। कांग्रेस नए और पुराने दो धड़ों में बंट गई थी। इसका असर त्रिपुरी अधिवेशन में भी दिखा। 29 जनवरी 1939 को कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव का परिणाम घोषित किया गया। इसमें सुभाषचंद बोस को विजयी घोषित किया गया। सुभाष बाबू को 1580 वोट और सीतारमैया को 1377 वोट मिले थे। गांधी जी ने एक लेख के माध्यम से सीतारमैया की हार को अपनी हार बताया। इसके बाद वर्धा में हुई कार्यकारिणी की बैठक में भी कांग्रेस के नए और पुराने धड़े की खींचतान सामने आ गई। गंभीर रूप से बीमार होने के बावजूद सुभाष चंद बोस अधिवेशन में पहुंचे, लेकिन यहां पर पुराने कांग्रेसी और नए कांग्रेसियों में खींचतान होती रही। सुभाषचंद बोस पूरे समय अधिवेशन की अध्यक्षता भी नहीं कर सके और न ही वे अधिवेशन को संबोधित कर सके। जबकि हजारों कार्यकर्ता और लाखों लोग उनकी गर्जना सुनने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। उनके स्थान पर मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अधिवेशन के बचे हुए सत्रों की अध्यक्षता की। पुराने कांग्रेसियों में मौलाना अबुल कलाम आजाद, सीतारमैया, कृपलानी, पंत, पटेल एक तरफ थे। नेहरू दोनों धड़ों को एक साथ लाने की कोशिश कर रहे थे और समाजवादी धड़ा तटस्थ था। इस अधिवेशन में सुभाषचंद बोस के बीमार होने और गांधी जी के नहीं पहुंचने से पुराना धड़ा पूरी तरह से युवाओं पर भारी पड़ गया।
नहीं पहुंचे थे महात्मा गांधी
सीतारमैया की हार से महात्मा गांधी काफी दुखी थे। उन्होंने त्रिपुरी अधिवेशन से ठीक पहले राजकोट में उपवास की घोषणा कर दी। सुभाषचंद बोस और कांग्रेस के दूसरे नेताओं ने उन्हें त्रिपुरी अधिवेशन में शामिल होने के लिए बार-बार आग्रह किया लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी। कई पुस्तकों में उल्लेख मिलता है कि गांधी जी ने कस्तूरबा गांधी की सलाह को भी अनसुना कर दिया। गांधी जी के त्रिपुरी अधिवेशन में न पहुंचने से कांग्रेस पार्टी किसी भी बड़े मुद्दे पर निर्णय नहीं ले सकी, बाद में सुभाषचंद बोस ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और फॉरबर्ड ब्लॉक की स्थापना की। सुभाष बाबू के इस्तीफा देने के बाद डा. राजेंद्र प्रसाद को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।
अंग्रेजों पर निर्णायक प्रहार करना चाहते थे बोस
पूरी दुनिया में दूसरे महायुद्ध की आहट साफ सुनाई दे रही थी। नेता जी का मानना था कि इंग्लैण्ड यदि जर्मनी के साथ युद्ध में उलझता है तो वह कमजोर पड़ जाएगा, ऐसी स्थिति में जापान, जर्मनी, रूस की सहायता लेकर अंग्रेजों पर निर्णायक प्रहार किया जाए जिससे अंग्रेज भारत छोड़कर जाने के लिए मजबूर हो जाएं। ऐसा कई स्थानों पर उल्लेख भी मिलता है कि सुभाषचंद बोस ने मुंबई में हिटलर के प्रतिनिधियों से गुप-चुप मुलाकात भी की थी, इसी बात को लेकर महात्मा गांधी नाराज थे। इसके अलावा बोस बंगाल और दूसरे प्रांतों में छोटे संगठनों से मिलजुलकर सरकार बनाना चाहते थे जिससे उनके कांग्रेस नेताओं से मतभेद उभरकर सामने आ गए।
देश को महाशक्ति बनाना चाहते थे सुभाष
सुभाषचंद बोस देश को महाशक्ति बनाना चाहते थे। इसके लिए वे तकनीक और उद्योग को प्राथमिकता देना चाहते थे। कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने दिल्ली में कांग्रेस की प्रांतीय सरकारों के उद्योग मंत्रियों का सम्मेलन भी बुलाया था। उन्होंने एक नियोजन समिति का गठन भी किया था, जिसकी कमान जवाहरलाल नेहरू को सौंपी थी। इस सम्मेलन में भारत के जाने-माने इंजीनियर डा. विश्वैसरैया भी शामिल हुए थे। उन्होंने सुभाष के इस नजरिए की काफी प्रशंसा भी की थी। सुभाष के इस सपने को लेकर सभी युवा नेताओं ने हाथोहाथ लिया था लेकिन कांग्रेस के पुराने नेता इसकी आलोचना करते थे।