प्रकरण के तथ्यों के अनुसार रीवा जिला निवासी युवती ने अस्पताल में एक बच्चे को जन्म दिया। जन्म देने के बाद उसने अस्पताल में ही खुदकुशी कर ली। इसके पूर्व उसने बताया कि बच्चे का पिता अमित तिवारी है। मृतका के पिता की शिकायत पर आरोपी के खिलाफ भादवि की धारा 376 व 306 के तहत प्रकरण दर्ज किया गया। इस मामले में पॉक्सो एक्ट की विशेष अदालत रीवा ने 18 दिसम्बर 2020 को आरोपी के खिलाफ आरोप तय किये। इस आदेश को आरोपी ने मप्र हाईकोर्ट में चुनौती दी। 2 दिसम्बर 2021 को हाईकोर्ट ने रीवा विशेष अदालत के उक्त आदेश को निरस्त कर दिया। हाईकोर्ट के इसी फैसले को पीडि़ता के पिता ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर हैरानी जताई। पीठ ने कहा कि इस मुकदमे के तथ्य काफी हृदय विदारक हैं और साथ ही, पहली सूचना के पंजीकरण में देरी के आधार पर बलात्कार के अपराध के अभियुक्तों को बरी करने का उच्च न्यायालय का आदेश पूरी तरह से समझ से बाहर और आक्षेपित निर्णय अधिक परेशान करने वाला है।
ट्रायल कोर्ट में चलेगा मुकदमा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मुकदमे की एक और परेशान करने वाली बात यह है कि याचिकाकर्ता मृतक का दुर्भाग्यपूर्ण पिता है जिसे न्याय के लिए इस न्यायालय के समक्ष आना पड़ा। राज्य से उच्च न्यायालय द्वारा पारित अवैध आदेश को चुनौती देने की अपेक्षा की गई थी। कुछ अपवादों को छोड़कर, आपराधिक मामलों में जिस पार्टी को पीडि़त पक्ष के रूप में माना जाता है, वह राज्य है जो बड़े पैमाने पर समुदाय के सामाजिक हितों का संरक्षक है और इसलिए राज्य के खिलाफ कृत्य करने व्यक्ति के खिलाफ आवश्यक कदम उठाने की जिम्मेदारी राज्य की है। लेकिन राज्य ने ऐसा नहीं किया। अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया और निचली अदालत को आरोपी के खिलाफ मामले की सुनवाई को आगे बढऩे की अनुमति दी।
ट्रायल कोर्ट में चलेगा मुकदमा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मुकदमे की एक और परेशान करने वाली बात यह है कि याचिकाकर्ता मृतक का दुर्भाग्यपूर्ण पिता है जिसे न्याय के लिए इस न्यायालय के समक्ष आना पड़ा। राज्य से उच्च न्यायालय द्वारा पारित अवैध आदेश को चुनौती देने की अपेक्षा की गई थी। कुछ अपवादों को छोड़कर, आपराधिक मामलों में जिस पार्टी को पीडि़त पक्ष के रूप में माना जाता है, वह राज्य है जो बड़े पैमाने पर समुदाय के सामाजिक हितों का संरक्षक है और इसलिए राज्य के खिलाफ कृत्य करने व्यक्ति के खिलाफ आवश्यक कदम उठाने की जिम्मेदारी राज्य की है। लेकिन राज्य ने ऐसा नहीं किया। अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया और निचली अदालत को आरोपी के खिलाफ मामले की सुनवाई को आगे बढऩे की अनुमति दी।