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हर्बल की आड़ में बिक रहा सिंथेटिक रंग, देखें वीडियो

locationजबलपुरPublished: Mar 20, 2019 06:47:31 pm

Submitted by:

manoj Verma

बाजारों में त्योहार आते ही सड़क पर बिकने लगा रंग, त्वचा की बीमारी का खतरा

holi jabalpur

बाजारों में त्योहार आते ही सड़क पर बिकने लगा रंग

जबलपुर । होली त्योहार पर बाजारों में बिकने वाले हर्बल रंग की आड़ में कैमिकलयुक्त रंग-गुलाल बेचे जा रहे हैं। बाजार में दुकानदार से लेकर ग्राहक को इस बात की जानकारी नहीं है कि हर्बल रंग और गुलाल की क्या विशेषता है। अलबत्ता, दो दिन के होली त्योहार पर रासायनिक रंग बेचकर जमकर कमाई की जा रही है, जो आगामी बीमारियों को न्योता दे रही है। बाजार में विक्रय होने वाले रंगों की हकीकत बयां करती एक्सपोज की रिपोर्ट…।
होली पर बिकने वाले लाल, हरे, काले, नीले रंग और गुलाल में खुलेआम हर्बल के नाम पर धोखा दिया जा रहा है। ग्राहक दुकानदारों की बातों में आकर रासायनिक रंग-गुलाल खरीद रहे हैं, जिससे उन्हें चूना लग तो रहा है लेकिन रासायनिक रंगों से होने वाली हानि से वे अनजान हैं।
पैकेट में आते हैं हर्बल रंग
दुकानदारों के ही मुताबिक हर्बल रंग पैकेट में आते हैं। खुलेआम डिब्बी या खुले नहीं मिलते हैं। वहीं दूसरी जगह दुकानों पर यह दावा किया जा रहा था कि गुलाल पूरी तरह हर्बल है। यह आम गुलाल से कुछ महंगा है। दुकानदार की बातों को सुनकर लोगों खरीद-फरोख्त में लगे हुए थे।
गलगला मुख्य बाजार
शहर के गलगला में रंग-गुलाल का मुख्य बाजार है। यहां रंगों की दुकानों के अलावा पिचकारी, विग आदि की दुकानें भी लगाई गई है। रंग वालों से एक्सपोज टीम ने बातचीत की तो यह माजरा सामने आया है कि वे जिस रंग को बेच रहे हैं, उन्हें भी नहीं मालूम है कि वह कौन सा रंग है?
गेरू और पीली मिट्टी चलन में
होली त्योहार पर गेरू पाउडर और पीली मिट्टी भी चलन में आ गई है। गेरू चार सौ रुपए प्रति बोरी और पीली मिट्टी भी सौ रुपए बोरी मिल रही है। पीली मिट्टी खदानों से निकाली जा रही है। वहीं, गेरू भी पाउडर करके बाजार में लाया गया है। दुकानदारों के मुताबिक गेरू का चलन पीली मिट्टी की अपेक्षा कम है। पीली मिट्टी में छोटे पत्थर के कण भी शामिल रहते हैं।
ये कहते हैं एक्सपर्ट
चटख और चमकीले नहीं होते हर्बल रंग
सेवानिवृत प्रो. एचबी पालन के मुताबिक रंग कोई न कोई कैमिकल से तैयार करके ही बनाया जाता है। इस रंग को पत्थर के पाउडर या अरारोट में मिलाकर गुलाल तैयार होता है। इससे इसे हर्बल नहीं कहा जा सकता है। हर्बल रंग ज्यादातर पत्ती, फूल और जड़ से ही बनाए जाते हैं। इसके लिए इन्हें उबालकर, सुखाया जाता है तभी ये अपना रंग छोड़ते हैं। हर्बल रंग चटख और चमकीले नहीं होते हैं। होली पर साधारणत: कैमिकलयुक्त रंग ही चलन में हैं। हर्बल रंग महंगे होते हैं, जिससे ये बाजार में कम ही आते हैं।
त्वचा और श्वास संबंधी हो सकती बीमारी
विक्टोरिया अस्पताल के एमडी डॉ. संदीप भगत के मुताबिक कैमिकल रंगों से त्वचा और श्वास संबंधी बीमारी हो सकती है। यह रंग आंखों के लिए खतरनाक हैं। गत वर्ष होली के समय कुछ मरीज आए हैं, जिन्हें रंगों से एलर्जी हो गई थी। कुछ मरीजों को आंखों में तकलीफ हो गई थी। पत्थर का पाउडर खासकर गुलाल में इस्तेमाल होता है, जो श्वांस संबंधी मरीजों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है।
दुकानदार से बातचीत के अंश
दुकानदार-1
रिपोर्टर- क्यों ये हर्बल गुलाल है क्या?
दुकानदार- नहीं।
रिपोर्टर- तो ये कौन सा है?
दुकानदार- ये सामान्य गुलाल है।
रिपोर्टर- हर्बल गुलाल कैस होता है?
दुकानदार- हर्बल गुलाल पैकेट में आता है।
रिपोर्टर- इससे तो बीमारी हो सकती है?
दुकानदार- ये तो वर्षों से बिक रहा है, अभी तक तो कोई शिकायत नहीं आई है। लेकिन आप हर्बल जानते हैं क्या?
रिपोर्टर- उसी की तो जानकारी लेने आए हैं। हर्बल है तो दे दो।
दुकानदार- हर्बल का मतलब होता है आयुर्वेदिक। लेकिन किसी भी पाउडर में कैमिकल रंग मिलाने से वह क्या हर्बल हो जाता है?
रिपोर्टर- हां, ये तो ठीक बात कर रहे हो, लेकिन हर्बल तो भी मिलता होगा?
दुकानदार- अरे, भैया। यहां पूरे बाजार में यही बिक रहा है। चाहे हर्बल मांगो या फिर सामान्य लो। सब यही है।
दुकानदार-2
रिपोर्टर- क्यों ये गुलाल कैसे दे रहे हो?
दुकानदार- साठ रुपए किलो।
रिपोर्टर- लेकिन ये तो हर्बल नहीं है?
दुकानदार- तो हर्बल ले लो। अस्सी रुपए किलो है।
रिपोर्टर- लेकिन ये कैसे माने कि ये हर्बल है?
दुकानदार- आप खुद ही चैक करके देख लो।
रिपोर्टर- ये तो बारीक है?
दुकानदार- हां, ये अरारोट का बना हुआ है।
रिपोर्टर- और ये दूसरा वाला?
दुकानदार- वो मार्बल पाउडर से।
रिपोर्टर- इसमें तो कैमिकल रंग ही मिलाया होगा, तो फिर ये कैसे हर्बल हो गया?
दुकानदार- अरे, भैया। इसमें फूलों का रंग मिलाया जाता है।
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