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स्कूल में बच्चों के माता-पिता होते हैं शिक्षक, जांच से जाएगा गलत संदेश

locationजबलपुरPublished: Jun 22, 2018 02:06:07 am

Submitted by:

mukesh gour

10वीं की छात्रा की खुदकुशी का मामला, हाईकोर्ट ने कहा…

mp high court

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जबलपुर. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अहम फैसले में कहा, स्कूल में शिक्षक और प्राचार्य बच्चों के माता-पिता की मानसिकता से ही कार्य करते हैं। अनुशासनहीनता और उत्पात लगाम लगाने के लिए छात्रों को डांटना-झिड़कना कई बार जरूरी हो जाता है। ऐसे में यदि कोई छात्र अतिसंवेदनशील होने के चलते जान देने जैसा अनुचित कदम उठा ले और इसके लिए प्राचार्य को दोषी मानकर उसके खिलाफ जांच या एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया जाएगा तो इसका शिक्षा जगत में विपरीत संदेश जाएगा। जस्टिस अतुल श्रीधरन ने इस मत के साथ अनूपपुर जिले के कोतमा स्कूल ऑफ एक्सीलेंस के प्राचार्य की जांच या एफआईआर दर्ज करने के आदेश से इंकार कर दिया।

सरकार ने किया विरोध
सरकारी वकील सुबोध कठर ने आवेदन पर आपत्ति जताते हुए कहा, शिकायत पर जांच के बाद पुलिस ने इसे सामान्य आत्महत्या का प्रकरण माना था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी मृतका के जिस्म पर कोई चोट के निशान नहीं पाए गए। उन्होंने देश की शिक्षा पद्धति पर भी विस्तार से तर्क रखे।

बाल दिवस पर लगाई थी फांसी
कोतमा निवासी सुनील कुमार सेन ने याचिका में कहा था, उसकी भतीजी गंगा सेन शासकीय हायर सेकंडरी स्कूल ऑफ एक्सीलेंस में 10वीं पढ़ रही थी। 14 नवंबर-2017 को बाल दिवस पर वह स्कूल से दो सहपाठियों के साथ घर आ रही थी। प्राचार्य आरके मिश्रा ने उन्हें रास्ते से लौटा लिया और बच्चों को जमकर डांटा। उन्होंने बच्चों को थप्पड़ भी जड़े। इससे व्यथित होकर गंगा ने स्कूल से लौटने के बाद शाम 5 बजे फांसी लगा ली। याचिका में घटना के लिए प्राचार्य को जिम्मेदार बताते हुए उनके खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए कहा गया। याचिकाकर्ता का पक्ष अधिवक्ता हर्षवर्धन सिंह ने रखा।

छड़ी छोडऩे का मतलब आंख मूंदना नहीं
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, छड़ी छोडऩे का मतलब यह नहीं है कि प्राचार्य और शिक्षक अनुशासनहीन, उद्दंड छात्रों के प्रति सख्त रवैया और डांट-डपट करना छोड़कर नजर अंदाज कर दें।

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