जबलपुर। कीमती लकडिय़ों से राजस्व प्राप्ति और पौधरोपण के लक्ष्य की पूर्ति के लिए पिछले चार दशक में सागौन के ज्यादा पौधरोपण से वनों का स्वरूप बिगड़ गया है। रूट शूट (जड़ों) से तैयार होने और जीवित पौधों की संख्या अधिक होने के कारण वन विकास निगम और सामान्य वन मंडलों में बड़ी संख्या में सागौन के पौधे रोपे गए। सागौन के वन में मिश्रित प्रजाति के पेड़ों की संख्या बहुत कम हो गई। दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियों के पौधे कम होने से पर्यावरण प्रभावित होने की आशंका है।
वन अनुसंधान एवं विस्तार शाखा ने मध्य प्रदेश में नए पौधरोपण सत्र में जंगल की मूल प्रजातियों के 2.43 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है। विभागीय नर्सरी में आइयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर) की रेड लिस्ट कैटेगरी सहित 40 प्रजातियों के पौधे तैयार किए जा रहे हैं। इसके लिए बजट जारी कर दिया गया है। वर्ष 2019 में इन्हीं पौधों को रोपण किया जाएगा। जबलपुर की नर्सरी में 28.22 लाख पौधे तैयार किए जा रहे हैं।
नहीं उगते अन्य प्रजातियों के पौधे
जिस स्थान पर सागौन के पेड़ होते हैं, वहां अन्य प्रजातियों के पौधों के बीजों का अंकुरण नहीं होता। इसकी पत्तियों में पीएच की मात्रा अधिक होने से मिट्टी के तत्वों में असंतुलन बढ़ जाता है। सागौन की पत्तियां जालीदार होने से सतह पर आवरण बना लेती हैं। दुर्लभ श्रेणी के पौधों में बीजा, हल्दू, तिनसा, धामन, धावड़ा, कुल्लू, मैदा, पाडर, सलई,अंजन एवं पीपल, गूलर, पाकर, अचार, करंज, हर्रा, बहेड़ा, नीम, महुआ, जामुन, सीता फल, बेर, कुसुम, जंगल जलेबी, सप्तपर्णी, खमेर, मुनगा, अमलतास, पलास खैर, सहतूत, बांस, सिस्सू आदि शामिल हैं।